स्वदेशी की अवधारणा
स्वदेशी उत्पादों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल के बाद अब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसे आगे बढ़ाने की बात कही है।
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शाह ने कहा है कि अब सुरक्षाबलों की कैंटीन में सिर्फ स्वदेशी सामान की बिक्री होगी। सुरक्षाबलों यानी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) जैसी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) की सभी कैंटीनों में एक जून से केवल स्वदेशी उत्पादों की बिक्री होगी। कहने का आशय यह है कि स्वदेशी का मंत्र अब ज्यादा अमल में लाया जाएगा। एक तरह से यह न्यायसंगत और समझदारी भरा फैसला है। मगर रक्षा उपक्रम में इस बात का ख्याल रखना बेहद जरूरी होगा। स्वदेशी की अवधारणा को पुष्ट करने के चक्कर में देश की सुरक्षा व्यवस्था के साथ कोई अनहोनी या खेल न हो जाए, इस बात पर सरकार को सतर्क रहने की जरूरत है। सिर्फ कह देने भर से कुछ नहीं होता, इस तथ्य को सरकार को स्वीकारना ही होगा। हकीकत में भी उस बात को परखा जाना बेहद जरूरी है। यह भी देखने और समझने की जरूरत है कि स्वदेशी सामानों पर हमारी निर्भरता कितनी है?
ठीक है कि प्रधानमंत्री ने खादी के उत्पादों की बिक्री का उल्लेख कर यह जताने और बताने का प्रयास किया कि स्वदेशी उत्पादों पर हमारी पसंद और खरीद ही आगे चलकर हमें आत्मनिर्भर होने के मार्ग पर ले जाएगी। यह विचार कहीं से भी खारिज नहीं की जा सकती है। स्वदेशी की अवधारणा के बलबूते ही आज चीन न केवल हमसे बल्कि कई देशों से अव्वल है। कायदे से तो हमें चीन से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। हां इस बात का ख्याल जरूर रहे कि इसके कारण देश की अस्मिता और एकता पर कोई संकट न आए। स्वदेशी का अर्थ वास्तव में स्वतंत्र, आत्मनिर्भर होना और हमारे देश के प्रति वफादार होना है। गौरतलब है स्वदेशी आंदोलन को सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक और उसके बाद महात्मा गांधी ने राष्ट्रवादी आंदोलन में किया था। कह सकते हैं कि स्वदेशी हमारे राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम का मूलमंत्र था। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे नीति निर्धारकों ने स्वदेशी उत्पादों को तिलांजलि देकर भूमंडलीकरण का मंत्रोचार शुरू कर दिया। और आहिस्ता-आहिस्ता हम विदेशी सामानों के गुलाम होते चले गए। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की पहल को संजीदगी से अमल में लाने से ही देश का कल्याण होगा।
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