आत्मनिर्भर भारत की दिशा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वक्तव्य निन्श्चित वैसा नहीं था जैसा कि आमतौर पर लोगों के मन में अपेक्षित था।
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सभी अटकलों और आकलनों के बीच से यह उम्मीद लगा रहे थे कि प्रधानमंत्री कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए लागू किए गए लॉक-डाउन-3 की विवेचना प्रस्तुत करेंगे। आम जनता की विशेषकर अपने-अपने स्थानों से पलायन करने वाले मजदूरों की समस्याओं का उल्लेख करेंगे।
महामारी के नियंत्रण में आ रही बाधाओं और उनके संभावित निराकरणों पर चर्चा करेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री ने ऐसा कुछ नहीं किया और जो किया वह अंधेरे का उल्लेख किए बिना प्रकाश के महत्त्व को दर्शाने जैसा था। उन्होंने कोरोना काल की समस्याओं का उल्लेख नहीं किया, लेकिन उत्तर कोरोना काल में खड़े होने वाले भारत का खाका प्रस्तुत कर दिया। उन्होंने सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कही कि आपदा को अवसर में बदलना है।
और भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। इस तरह उनका यह संबोधन उन सवालों का उत्तर था, जो बार-बार उठ रहे थे कि कोरोना के पश्चात भारतीय अर्थवयवस्था क्या मोड़ लेगी? जो करोड़ों लोग कोरोना निरोधक उपायों की चपेट में आकर अपना व्यवसाय और आर्थिक आधार खो बैठे हैं, उनका भविष्य क्या होगा? प्रधानमंत्री ने जब अपने आर्थिक पैकेज की राशि के 20 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने और इसके कुल जीडीपी के 10 फीसद होने की बात कही तो उन्होंने उत्तर कोरोना काल के वे सभी प्रश्नों, शंकाओं और आशंकाओं को एक सकारात्मक और उत्साहवर्धक ढांचे में नियोजित करने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य वस्तुत: एक नीति वक्तव्य था, जिसकी इस समय अत्यधिक आवश्यकता थी।
उनका यह वक्तव्य जहां एक ओर भविष्य की संभावनाओं की ओर संकेत कर रहा था तो दूसरी ओर लोगों को कोरोना के अनावश्यक भय से मुक्त कर रहा था। यानी निकट भविष्य में कोरोना तो रहेगा, लेकिन कोरोना के भय के कारण आर्थिक विकास की गतिविधियां रुक नहीं पाएंगी। कोरोना से निपटा भी जाएगा और देश के बुनियादी ढांचे को भी मजबूती प्रदान की जाएगी। और यह मजबूरी इस अर्थ में होगी कि अर्थव्यवस्था के निचले पायदान पर खड़े लोग टूटकर बिखरे नहीं बल्कि स्वयं को सरकारी प्रयासों से जोड़कर नये सिरे से खड़ा करें। और आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को साकार करने में अपना योगदान करें।
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