फेसबुक-जियो सौदा
फेसबुक द्वारा रिलायंस इंडस्ट्रीज के जियो प्लेटफॉर्म्स में 9.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने का ऐलान कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।
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मंदी और सुस्ती के इस दौर में यह भारत में इस वर्ष का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है। 9.9 प्रतिशत का अर्थ है 43,574 करोड़ रु पये। इस सौदे में जियो प्लेटफॉर्म्स की प्री-मनी एंटरप्राइज वैल्यू 4.62 लाख करोड़ रु पये आंकी गई है। रिलायंस ने 2021 तक अपने को कर्जमुक्त होने का लक्ष्य तय किया हुआ है।
इस मायने में यह उसका पहला बड़ा प्रमाण है। सरकार ने इसकी अनुमति देते समय विदेशी निवेश आगमन के साथ अन्य कई बातों का ध्यान रखा होगा। मसलन, कहा गया है कि इन दोनों बड़ी कंपनियों के बीच हुए समझौते का सबसे बड़ा लाभ छोटे कारोबारियों को मिलेगा।
वह कैसे? रिलायंस देश के तीन करोड़ छोटे किराना व्यापारियों को वाट्सएप के जरिये डिजिटल कारोबार से जोड़ने की तैयारी में है। वाट्सएप भी फेसबुक के ही स्वामित्व में आता है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने इस सौदे की घोषणा के साथ कहा कि जल्द ही जियोमार्ट और वाट्सएप के सहयोग से छोटे किराना कारोबारी आसपास के ग्राहकों से ऑर्डर ले सकेंगे।
हालांकि इससे यह नहीं समझना चाहिए कि इससे आम किराना दुकानदारों की बिक्री बढ़ जाएगी। दरअसल, ये दुकानदार रिलायंस जियो के डिजिटल कॉमर्स प्लेटफॉर्म जियोमार्ट से सामान लेंगे और वाट्सएप के जरिये अपने आसपास के ग्राहकों से ऑर्डर ले सकेंगे। इसका मतलब साफ है। जियोमार्ट थोक बाजार से किराना कारोबारी माल लेंगे और ऑर्डर के अनुसार डिलीवरी करेंगे। इस सुविधा के शुरू होने पर ग्रामीण और छोटे शहरों के लोग भी ऑनलाइन शॉपिंग कर सकेंगे। ई-कॉमर्स कंपनियों की पहुंच अभी केवल प्रमुख शहरों तक है।
ये देश के 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी तक नहीं पहुंच पाए हैं। फेसबुक जियो साझेदारी इसका छोटे शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक ई-कॉमर्स का विस्तार कर सकती है। इन किराना दुकानदारों के मार्फत ग्राहक हर प्रकार के सामान मंगा सकेंगे। रिलायंस इस समझौते के बाद अमेजन, वालमार्ट जैसी कंपनियों के लिए भारत में प्रतिस्पर्धा बढ़ा सकती है। हां, इसमें रोजगार जरूर सृजित होगा लेकिन इसका उल्टा भी असर हो सकता है। देश भर की बहुत सारी परंपरागत थोक दूकानों पर इसका नकारात्मक असर न हो इसका ध्यान रखना होगा।
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