आवश्यक था अध्यादेश
अंतत: केंद्र सरकार ने बेहद सख्त अध्यादेश लाकर डॉक्टरों-नसर्ोे समेत अन्य स्वास्थ्यकर्मियों पर अनवरत हो रहे हमलों को रोकने की दिशा में उचित और बड़ा कदम उठाया है।
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इंदौर, भोपाल, मुरादाबाद, औरंगाबाद (बिहार), मेरठ, बेंगलुरू सहित अन्य शहरों से हमलों की घटनाएं लगातार आ रही थीं। और स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल भी तोड़ रही थीं। डॉक्टरों-नसरे पर हमलों को देखते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (ज) ने नाराजगी जाहिर करते हुए गत 22-23 अप्रैल को सांकेतिक विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था।
इसे देखते हुए इस तरह के अध्यादेश की अत्यंत आवश्यकता थी। अध्यादेश के आने के बाद एसोसिएशन ने अपना सांकेतिक प्रदर्शन वापस ले लिया है। अध्यादेश के प्रावधानों के मुताबिक स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला गैर-जमानती अपराध होगा। हमलावरों का दोष सिद्ध होने पर 7 साल की सजा और 5 लाख रुपये के आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है। इसके अतिरिक्त यदि डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मियों के वाहन या क्लिनिक को क्षति पहुंचाई गई तो उसके बाजार मूल्य से दोगुनी धनराशि वसूली जाएगी।
अध्यादेश के जरिये महामारी अधिनियम, 1897 में संशोधन किया गया है। करीब 123 साल पहले जब बंबई (अब मुंबई) में बूबोनिक प्लेग ने महामारी का रूप ले लिया था तब अंग्रेजों ने यह कानून बनाया था। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस अध्यादेश से डॉक्टरों और नसर्ोे पर हमला करने वालों के मन में भय पैदा होगा और वे ऐसा करने से रुकेंगे। उनकी इन हरकतों से जहां एक ओर कोरोना मरीजों के उपचार में बाधा आ रही थी तो दूसरी ओर अन्य लोगों को उकसावा भी मिल रहा था।
इन हमलों के कारण तमाम तरह की अफवाहें भी फैल रही थीं और सांप्रदायिक तनाव भी पैदा हो रहा था। दरअसल, स्वास्थ्यकर्मियों पर हमलों के अधिकांश मामलों में समुदाय विशेष के लोग संज्ञान में पाए गए थे इसलिए आम लोगों में उनके प्रति नफरत जन्म ले रही थी और देश के कई हिस्सों में सामाजिक बहिष्कार और अलगाव की घटनाएं भी सामने आने लगी थीं। कोरोना की रोकथाम में जुटे डॉक्टरों और नसर्ोे पर होने वाले हमले सामान्य हमले की घटनाएं नहीं थीं, बल्कि कोरोना जैसी भीषण और जानलेवा वैश्विक महामारी की रोकथाम में बहुत बड़ी बाधा भी बन रही थी। अपेक्षा की जानी चाहिए कि इस अध्यादेश के आने के बाद अब स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले रुकेंगे।
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