शून्य से नीचे तेल
किसी ने कल्पना नहीं की होगी कि कोई ऐसा समय आएगा जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें शून्य तक चली जाएंगी और तेल उत्पादक देशों को गिड़गिड़ाना होगा कि कोई खरीदार उनके पास आए।
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कोरोना प्रकोप ने दुनिया में ऐसी ही स्थिति पैदा कर दी है। वायदा बाजार में तेल की कीमतें इतिहास में पहली बार शून्य से भी नीचे आ गई। सबसे बुरी स्थिति तो अमेरिकी वायदा बाजार की हुई जहां कच्चा तेल गिरते हुए नकारात्मक अवस्था में चला गया। शून्य से 36 डॉलर नीचे। अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) का वायदा मूल्य मई डिलीवरी के लिए -37.63 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ। इसका अर्थ क्या है?
वैसे जो सउदी अरब एवं रुस की प्रतिस्पर्धा के कारण पहले ही तेल के मूल्या गिरे थे लेकिन अब तो यह रसातल को छू गया। इस तरह के मूल्य के भुगतान का अनुभव किसी को नहीं होगा। कोई यह नहीं समझे कि अगर हम एक बैरल तेल लेंगे तो बिक्रेता कंपनी तेल के साथ हमें 36 डॉलर भी देगी। हर महीने में कच्चे तेज की आपूर्ति का ठेका दिया जाता है तो मई का नकारात्मक हो गया है। लॉकडाउन के कारण किसी देश को इस समय तेल की आवश्यकता नहीं है कि इसकी बिक्री हो सके। अगर बाजार में मांग ही नहीं है तो कीमत गिरना ही है। तेल उत्पादक देशों की यह अपील कि अगर किसी खरीदार के पास पैसे नहीं हैं तो हमसे ले लेकिन तेल खरीदे।
भारत में आम सोच है कि सरकार को इसका लाभ उठाकर तेल खरीद लेना चाहिए, किंतु हमारे पास तेल पर्याप्त मात्रा है और ज्यादा रखने की जगह ही नहीं। खैर, अगर कोई खरीदान नहीं मिला तो भंडारण का संकट पैदा हो जाएगा जिसका अनुभव भी किसी को नहीं है। अमेरिका की शेल कंपनियों का यह कहना कि वे इस स्थिति का सामना कैसे करें यह ही समझ नहीं आ रहा है, स्थिति की व्याख्या करने के लिए पर्याप्त हैं। कंपनियों को विशल टैंकर शिपों को किराए पर लेना पड़ रहा है लेकिन इससे खर्च बढ़ेगा।
बिना आय के खर्च का क्या असर हो सकता है बताने की जरूरत नहीं। ऐसी कंपनियां दीवालियां हो सकती हैं। इसके कई नकारात्मक परिणाम आएंगे जिसमें बेरोजगारी प्रमुख है। भारत के काफी लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं। वहां की अर्थ दशा खराब हुई तो ये बेरोजगार हो जाएंगे और इनके पास वापस आने का ही विकल्प बचेगा। इसलिए भारत को इससे निपटने की तैयारी करनी होगी।
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