आशा की तस्वीर
विश्व भर में कोरोना के बढ़ते संक्रमण तथा मृतकों का हर घंटे, हर दिन ऊपर की ओर उछलता ग्राफ हम सबको डरा रहा है।
![]() आशा की तस्वीर |
अभी तक कोई देश यह कहने की स्थिति में नहीं है कि वह कोरोना से मुक्त हो गया। जिस चीन में सबसे पहले यह फैला और जिसने इसे खत्म करने का ऐलान कर दिया वहां भी नये मरीज सामने आ रहे हैं। विश्व भर में कोरोना कोविड-19 वायरस से अब तक 21 लाख के लगभग लोग संक्रमित हो चुके हैं। लगभग एक लाख 36 हजार लोग मारे जा चुके हैं। लॉकडाउन, जांच, उपचार में पूरी ताकत झोंक देने के बावजूद इतनी बड़ी संख्या एक मनुष्य के रूप में हमें घबरा देने के लिए पर्याप्त है। तो क्या कोरोना प्रकोप के सारे पहलू डरावने ही हैं? इसका उत्तर है, नहीं हैं। सच तो यह है कि जितने लोगों की इससे मौतें हुई हैं, उससे कहीं ज्यादा इस बीमारी से मुक्त होकर बाहर आ गए हैं। वास्तव में एक लाख 36 हजार मौतों के समानांतर पांच लाख 12 हजार के आसपास मरीज स्वस्थ हुए हैं यानी मरने वालों से लगभग साढ़े चार गुणा संख्या कोरोना कोविड 19 से संघर्ष कर पराजित करने वालों की हैं।
भारत में भी देखें तो करीब 440 मौतों की तुलना में 1520 से ज्यादा लोग स्वस्थ हुए हैं। अगर हम इसमें यह भी जोड़ दें कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग तथा जागरूकता अभियानों के कारण कितनी भारी संख्या में लोग संक्रमित होने से बच गए तो पूरी तस्वीर बदल जाएगी। कहा गया है कि हर निराशा के बीच आशा की एक तस्वीर अवश्य होती है। हर विपत्ति अपने साथ उससे निकलने का रास्ता भी लेकर आती है। विश्व मानवता ने अनेक संकटों और चुनौतियों का सामना किया है और उससे मुक्ति भी पाई है। कोई संकट ऐसा नहीं आया जो स्थायी रह गया या पराजित नहीं हुआ। बस, हमें अनुशासन और संयम के साथ उसका मुकाबला उसी तरीके से करना पड़ता है जिस तरीके से किया जाना चाहिए। कोरोना कोविड 19 संकट के दौरान कई देशों से चूक हुई, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी चीन को बचाने के लिए कोताही बरती और सच से विश्व को अवगत कराने में काफी देर कर दी। ऐसा नहीं होता तो इतनी क्षति नहीं हो सकती थी। बावजूद विश्व समुदाय संघर्ष करते हुए लोगों को बचाने में लगा है। अगर हम इतने लोगों को ठीक कर सकते हैं, तो यह बिल्कुल मानकर चलना चाहिए कि एक दिन ऐसा आएगा कि स्वस्थ होने वालों के सामने संक्रमितों की संख्या नगण्य रह जाएगी।
Tweet![]() |