सामाजिक आपातकाल
अब यह साफ हो गया है कि लॉक-डाउन अभी समाप्त नहीं होने जा रहा है।
सामाजिक आपातकाल |
राज्यों के मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य विशेषज्ञ और कोरोना को नियंत्रित करने वाले प्रशासनिक तंत्र से जुड़े लोग लगातार यह राय प्रकट कर रहे थे कि अगर 14 अप्रैल को लॉक-डाउन हटा लिया गया तो पिछले दिनों की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। लॉक-डाउन के माध्यम से जिस सोशल डिस्टेंसिंग को बनाकर रखा गया है और जिसमें कोरोना के प्रसार को काफी हद तक नियंत्रित किया है वह समाप्त हो जाएगी। और स्थिति के पहले से अधिक खतरनाक हो जाने की आशंका बनी रहेगी। निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आमतौर पर व्यक्त की जा रही इन आशंकाओं का संज्ञान लिया और मंत्री समूह तथा सर्वदलीय बैठकों में प्रधानमंत्री ने लॉक-डाउन को अभी नहीं हटाने के बारे में विभिन्न धारणाओं को अपना समर्थन दे दिया।
पिछले मंगलवार को विशेष रूप से कोरोना को रोकने से संबंधित जिस केंद्रीय मंत्री समूह का गठन किया गया था उसकी बैठक हुई। इस बैठक में राजनाथ सिंह, अमित शाह, निर्मला सीतारमन आदि शामिल थे। सभी का एक स्वर से मानना था कि अगर लॉक-डाउन हटा भी लिया जाए तो शॉपिंग मॉल, धार्मिक स्थल और शैक्षणिक संस्थानों को पंद्रह मई तक बंद रखा जाए। इसी तरह बीते बुधवार को प्रधानमंत्री ने विपक्ष के सांसदों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बातचीत की। इस बैठक में कांग्रेस, बसपा, सपा, शिवसेना, जद (यू) और एनसीपी से संबंधित सांसदों ने भाग लिया। लगभग 80 फीसद से ज्यादा सांसदों ने लॉक-डाउन को आगे बढ़ाने का सुझाव दिया। इस बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह सामाजिक आपातकाल है।
इसमें जहां एक ओर सतत चौकसी बनाए रखने की जरूरत है तो दूसरी ओर कुछ मामलों में कठोर फैसले लेने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने इन कठोर फैसलों के बारे में स्पष्टत: तो नहीं कहा लेकिन इसका आशय यह निकाला जा सकता है कि लॉक-डाउन 14 अप्रैल के आगे भी जारी रहेगा। लेकिन इसी के साथ यह भी आवश्यक है कि जिन्होंने कोरोना निरोधक स्वास्थ्यकर्मियों के साथ अभद्रता की उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। वास्तव में देश के सामने बीमारी का मुकाबला करने के साथ सामाजिक स्तर पर एक-दूसरे का साथ देने की भावना और इसके लिए संस्थागत प्रणाली कायम करने की जरूरत है।
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