आशा के दीप
प्रधानमंत्री ने दीप प्रज्ज्वलन का आह्वान किया और समूचे देश ने इस आह्वान को अपना समर्थन दिया।
आशा के दीप |
पूरे भारत में शहर, देहात सभी जगह लोगों ने दीप जलाए और अति उत्साह में कहीं मशालें जलाई गई तो कहीं पटाखे भी छोड़े गए। हालांकि पटाखे और मशालें प्रधानमंत्री के आह्वान का हिस्सा नहीं था। लेकिन लोगों ने अति उत्साह में यह भी कर डाला। उन्होंने एक तरह से इस अवसर को दीपावली के त्योहार का रंग दे दिया। यह लोगों का अतिवाद हो सकता है, मगर प्रधानमंत्री का जो उद्देश्य था कि कोरोना के विरुद्ध संघर्ष में समूचे देश की एकजुटता दिखाई दे, वह पूरी तरह से परिलक्षित हुई। प्रधानमंत्री यह भी जानते थे कि लॉक-डाउन की स्थिति में घरों में बंद रह रहे लोग ऊब और अवसाद का शिकार होते हैं। उनमें एक नया उत्साह पैदा करना और उन्हें ऊब और अवसाद के घेरे से निकालना ऐसे समय में बहुत आवश्यक होता है।
जब लोगों ने दीप प्रज्ज्वलित किए तो उन्होंने न केवल कोरोना के विरुद्ध संघर्ष करने के अपने संकल्प को दोहराया बल्कि वे अपने अवसाद के घेरे से भी बाहर आए। इस दीप प्रज्ज्वलन के अनुष्ठान में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि कुछेक अपवादों को छोड़कर सामान्यत: लोग घरों में ही रहे। और सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह से पालन किया। जब यह तथ्य के रूप में निर्धारित हो कि लॉक-डाउन ही कोरोना के प्रसार को रोकने का एकमात्र तरीका है तो ऐसे समय में सिवाय उसके जो आवश्यक सेवाओं से जुड़ा हुआ हो, किसी व्यक्ति की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती। लोगों की बड़ी भूमिका यह होती है कि वह घर के भीतर रहने के महत्त्व को समझे और घर में ही रहे।
उसका कोरोना के खिलाफ संघर्ष में एकमात्र योगदान यही है कि वह व्यक्तिगत तौर पर सावधानियां बरते और लॉक-डाउन के नियमों का पालन करे। प्रधानमंत्री के अनुष्ठान ने यह बात लोगों के दिल-दिमाग में बैठाने में सफलता प्राप्त की और इससे लोग भविष्य के प्रति आश्वस्त भी हुए। संकटकाल में लोगों में यह भाव भर देना निश्चित रूप से बड़ा काम था जो सफलता से पूरा हुआ। हालांकि कांग्रेस ने इसे भाजपा का राजनीतिक एजेंडा करार दिया था। वामपंथी भी इसकी आलोचना की अग्रिम पंक्ति में थे। लेकिन आम जनता ने वही किया जो उसे करना था। उम्मीद है दीप प्रज्ज्वलन अनुष्ठान कोरोना के विरुद्ध लड़ाई को नई ऊर्जा अवश्य देगा।
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