बंदिशें कायम रहें
यह सवाल पूरे देश के मन में है कि लॉकडाउन पहले घोषित तिथि के अनुसार 14 अप्रैल तक ही रहेगा या आगे भी बढ़ेगा? अभी तक इस दिशा में सरकार की ओर से कोई संकेत या संदेश नहीं मिला है।
बंदिशें कायम रहें |
लेकिन रेलवे का यह बयान कि संचालन कब से होगा इसका निर्णय रेलवे बोर्ड करेगा; बताता है कि अभी तक अंदर से इसकी तैयारी नहीं है। यात्री रेलों को चलाने पर अगर कोई निर्णय होगा तो आरक्षण के लिए कुछ-न-कुछ व्यवस्था जरूर की जाएगी। रेलवे बोर्ड ने कहा है कि रेल चलाने का फैसला सरकार करेगी। हालांकि रेल मंत्री पीयूष गोयल ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए रेलवे बोर्ड से बातचीत की है लेकिन इस मामले में कुछ कहा गया या नहीं इसकी सूचना नहीं है। इसी तरह अंतर्देशीय हवाई जहाजों ने भी 30 अप्रैल के पहले किसी तरह की टिकट बुकिंग न करने का फैसला भी काफी कुछ कह देता है।
हो सकता है नागरिक उड्डयन मंत्रालय से उनको कुछ संदेश मिला हो। वैसे भी कोरोना प्रकोप की जैसी भयावह स्थिति दुनिया में बनी हुई है उसे देखते 14 अप्रैल के बाद मेलजोल से लेकर आवागमन की स्थिति को सामान्य कर देना जोखिम भरा होगा। अमेरिका एवं यूरोप में स्थिति लगातार नियंत्रण से बाहर होती दिख रही है। प्रतिदिन मृतकों के आंकड़ों ने दुखद रिकॉर्ड बना दिया है। इन देशों को अपने यहां बंदिशें सख्त करनी पड़ रही हैं। उसमें कोई देश अपने नागरिकों की जान को लेकर जोखिम नहीं उठा सकता। हालांकि केंद्र एवं राज्य सरकारों के समय पर किए गए पूर्वोपायों से हमारे यहां इन देशों की तुलना में अभी तक बिल्कुल नियंत्रित स्थिति है। तब्लीगी जमात की मजहबी कट्टरता और जाहिलपन के कारण इसमें इजाफा हो गया तथा लोगों के अंदर भय भी पैदा हुआ है।
बावजूद अभी स्थिति बेकाबू हो गई है यह नहीं कहा जा सकता। तीन सप्ताह का चक्र तोड़ना वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है और प्रधानमंत्री के साहसिक फैसले का असर होगा। किंतु यह कतई नहीं कहा जा सकता कि कारोना प्रकोप का खतरा खत्म हो गया है या घट गया है। हम मानते हैं कि इससे आम लोगों की परेशानियां बढ़ी हैं, अर्थव्यवस्था की गति थम गई है, लेकिन हमारे देश की आबादी को देखते हुए उस स्थिति की कल्पना से ही भय पैदा हो जाता है कि अगर यह समाज में फैल गया तो फिर तस्वीर कितनी भयावह होगी। इसलिए लॉक-डाउन रहे या नहीं, हमें स्वयं ही बंदिशों का पालन करने के लिए तैयार रहना होगा।
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