महिलाओं के खिलाफ अपराध
रेलवे में महिलाओं के खिलाफ अपराध के आंकड़े यकीनन चिंताजनक है। सूचना अधिकार के तहत मिली जानकारी बता रही है कि रेलवे परिसर और रेल की यात्रा भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है।
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2017 से 2019 के बीच महिलाओं के खिलाफ रेलवे में 1672 आपराधिक घटनाएं हुई जिनमें 802 रेलवे परिसर तथा 870 रेलों में हुई। इस दौरान रेप के 165 मामले सामने आए। इनमें 136 मामले रेलवे परिसर तथा चलती रेलों में 29 रेप के मामले सामने आए। सामान्य कल्पना से परे है कि चलती रेल या रेलवे परिसर, जहां लोगों की संख्या काफी रहती है, में रेप हो जाए। दर्ज मामलों के अनुसार 2017 में 51, 2018 में 70 तथा 2019 में 44 महिलाओं के साथ रेप को अंजाम दिया गया। इसका वर्गीकरण करें तो 2019 में 36 रेलवे परिसर में तो आठ चलती रेलों में रेप हुए। इसी तरह 2017 में 41 परिसर तथा 10 चलती रेलों में तथा 2018 में 59 रेलवे परिसर में तथा 11 चलती रेलों में हुए।
ध्यान रखिए, ये वे मामले हैं जो पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हैं। कितने ही मामले होंगे जिनकी शिकायत पुलिस के पास पहुंचती ही नहीं होगी। रेल यात्रियों की सुरक्षा एवं संरक्षा सरकारें हमेशा प्राथमिकता में होने की बात करती रही हैं। इन तीन वर्षो के दौरान ही रेलवे परिसर एवं चलती रेलों में अपहरण के 771 ममले, लूटपाट के 4718, हत्या के प्रयास के 213 तथा हत्या के 542 मामले हुए। ये सामान्य अपराध हैं। लूटपाट आदि तो सामूहिक रूप से होती हैं पर महिलाओं के साथ यौनाचार किसी अकेली के साथ होता है। इसकी रोकथाम विचार का विषय होना चाहिए। वैसे अपराध की रोकथाम, मामले दर्ज कर जांच तथा कानूनी कार्रवाई की जिम्मेवारी संबंधित राज्य सरकारों की होती है, जहां से अपराध के समय रेल गुजर चुकी होती हैं।
इसके लिए राजकीय रेलवे पुलिस या जीआरपी होती है। हालांकि जैसा सरकार ने पिछले दिनों बताया था महिलाओं की सुरक्षा के लिए रेलवे ने अपनी ओर से भी कुछ व्यवस्थाएं की हैं। जोखिम वाले और पहचान किए गए मागरे या खंडों में औसत 2200 रेलों में रेलवे सुरक्षा बल या आरपीएफ के जिम्मे भी सुरक्षा दी गई है। हमारा मानना है कि रेलवे परिसर या चलती रेलों में महिलाओं के खिलाफ किसी तरह का यौनाचार संगीन अपराध का विषय तो है ही, यह रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था की विफलता का भी द्योतक है।
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