जीत ली जंग
सोमवार का दिन महिला सैनिकों के लिए मंगलकारी रहा। 54 पन्ने के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने सेना में महिला अफसरों को कमांड पोस्टिंग देने के रास्ते खोल दिए।
जीत ली जंग |
यानी उन्हें किसी यूनिट, कोर या कमान का नेतृत्व सौंपा जाएगा। साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि महिलाओं को तीन महीने में स्थायी कमीशन दिया जाए। मगर वह सीधी जंग में शामिल नहीं होंगी। सर्वोच्च अदालत का यह ऐतिहासिक फैसला दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर है।
दरअसल, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 मार्च 2010 में सेना में 14 साल की सेवा पूरी करने वाली महिला अफसरों को स्थायी कमीशन का आदेश दिया था। वह शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत था। तब के केंद्र सरकार की दलील थी कि महिलाओं को कमान पोस्ट नहीं दी जा सकती। शारीरिक क्षमता की सीमाओं व घरेलू दायित्वों को इसका आधार बनाया गया था। रक्षा मंत्रालय ने तब यह भी कहा था कि सैन्य अफसर महिलाओं को समकक्ष स्वीकार नहीं करेंगे। शीर्ष अदालत ने सरकार की इस दलील को परेशान करने वाला बताया। साथ ही अपनी मानसिकता बदलने की भी नसीहत दी। यह सही भी है।
गैरबराबरी की बात अब बेमानी हो चली है। महिलाओं ने उन क्षेत्रों में अपने कदम मुस्तैदी से जमाए हैं, जहां पहुंचने की कल्पना ही की जाती थी जबकि 28 साल में महिलाओं ने कई शौर्य गाथाएं लिखी हैं। चाहे वह काबुल में 19 लोगों को बचाने के वास्ते मेजल मिताली का अद्भुत काम रहा हो या स्क्वॉड्रन लीडर मिंटी अग्रवाल का साहस भरी भूमिका जिसमें उन्होंने बालाकोट स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के हमले को नाकाम किया था। साफ तौर पर अदालत का फैसला इसी तरफ इशारा करता है कि महिलाओं को कमतर आंकने की हर दलील बचकानी और सतही है। उन्हें सिर्फ इसलिए पीछे की पांत में नहीं रखा जा सकता कि वह शारीरिक रूप से कमजोर हैं या उनकी क्षमता पुरुषों से कमतर हैं।
इसके उलट अब तो वह पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं। सरकार के तर्क इस मायने में भी कमजोर साबित हुए क्योंकि पहले से 30 फीसद महिलाएं लड़ाकू क्षेत्रों में तैनात हैं। नि:संदेह शीर्ष अदालत का यह आदेश न केवल सेना में अब तक इसकी लड़ाई लड़ रहीं महिला सैनिकों के लिए मील का पत्थर साबित होगी वरन बाकी क्षेत्रों में पुरुषों के मुकाबले बराबरी की इच्छा रखने वाली महिलाओं को भी एक नैतिक ताकत देगी। बेहतर होता कि यह आदेश सरकार की तरफ से आता।
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