हिंसा के वीडियो

Last Updated 18 Feb 2020 05:23:29 AM IST

जामिया मिलिया इस्लामिया के पुस्तकालय का जो पहला वीडियो फुटेज आया है, उसे देखकर किसी के भी अंदर गुस्सा पैदा हो सकता है।


हिंसा के वीडियो

पुलिस अंदर घुसकर वहां पढ़ रहे छात्रों की डंडों से पिटाई शुरू कर देती है। इसे देखने के बाद राजनीतिक दलों तथा सोशल मीडिया एक्टिविस्टों की ओर से पुलिस का निंदा अभियान आरंभ हो गया था, जांच की मांग होने लगी। पुलिस का भी बयान आ गया, हमारे ध्यान में वीडियो आ गया है, जिसकी जांच की जा रही है।

किंतु जिस तरह से उसके बाद तीन वीडियो सामने आए, उनने पहले वीडियो से बने माहौल को बदल दिया है। इनमें साफ दिख रहा है कि पहले कुछ छात्र भागते आते हैं, और वहां पढ़ रहे छात्रों के पास पड़ी किताब अपनी ओर खींचते हैं ताकि वे पढ़ते दिखें। उनमें एक के गले में रूमाल बंधा हुआ है। क्यों? जाहिर है, उसका उपयोग पत्थरबाजी करते समय नकाब के रूप में किया गया। उसके बाद के वीडियो में कई सारे छात्र भागते हुए पुस्तकालय में आते हैं, उनको वहां पहले से खड़ा एक नवजवान अंदर करता है। एक नकाबपोश सबको कुछ निर्देश देता है।

फिर मेज को धकेल कर दरवाजे में लगाया जाता है ताकि बाहर से पुलिस को कुछ पता न चले। उनकुछ छात्रों के हाथों में पत्थर भी दिख रहा है। पंद्रह जनवरी को जामिया की हिंसा को देश भूला नहीं है। कुछ मिनटों के अंदर बसों को जलाए जाने का वीडियो में पेशेवर अपराधियों का कारनामा दिख रहा है। एक ओर हिंसा हो रही हो, तोड़फोड़ की जा रही हो, वाहनों को आग के हवाले किया जा रहा हो और उन सबसे निपटने आई पुलिस पर पत्थरों के साथ कुछ पेट्रोल बम फेंके जाएं तो पुलिस वहां मूकदर्शक नहीं रह सकती। उसे कार्रवाई करनी ही होगी। जामिया के एक द्वार से पहले ही एक वीडियो आ चुका है, जिसमें पुलिस छात्रों से पत्थर न मारने, ट्यूबलाइट और अन्य घायल करने वाली सामग्री न फेंकने की अपील कर रही है।

जाहिर है, एक सीमा के बाद पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी। अगर हिंसक तत्व हिंसा करके विश्वविद्यालय में भागेंगे तो परेशान पुलिस उनको खदेड़ते हुए वहां तक जाएगी। वह उस समय विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुमति नहीं मांगेगी। हालांकि फोन से अनुमति मांगी गई थी। हमारा मानना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन पूरे दिन का सीसीटीवी फुटेज जारी कर दे तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। चयनित अंश पुलिस, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, मानवाधिकार आयोग आदि को दिए गए हैं, इससे सच सामने नहीं आएगा।



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