मोदी की दो टूक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार पुन: स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 370 की न तो वापसी होगी और न ही नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की। ये दोनों देश के हित में हैं।
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उनका मानना है कि देश हित से जुड़े इन कामों को पहले हो जाना चाहिए था और पिछली सरकारों को करना चाहिए था। हालांकि अनु.370 और सीएए को लेकर अमेरिका और यूरोप के विभिन्न देशों की राय मिली-जुली है।
लेकिन भारत अपनी सक्रिय कूटनीति के जरिए उन देशों के सांसदों और बुद्धिजीवियों को आश्वस्त करने में सफल रहा है, जो कश्मीर के मुसलमानों के विरुद्ध कथित मानवाधिकार-उल्लंघन के आरोप लगा रहे थे। अभी हाल ही में यूरोपीय संघ के राजदूतों ने अपनी जम्मू-कश्मीर यात्रा के बाद विश्वास प्रकट किया कि भारत सरकार ने वहां सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए हैं।
जहां तक देश की विपक्षी राजनीतिक पार्टियों का सवाल है, तो इस मसले पर वे मुसलमानों के साथ हैं। लेकिन विपक्ष और मुसलमानों का तर्क है कि सीएए संविधान विरोधी है क्योंकि संविधान धर्म के आधार पर भेदभाव की इजाजत नहीं देता। लेकिन विपक्षी दल इस बात का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे पा रहे हैं कि सीएए से संविधान का उल्लंघन कैसे हो रहा है। यह ठीक है कि संविधान भारत के नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करता, लेकिन सीएए तो बाहर से धर्म के आधार पर प्रताड़ित होकर आए व्यक्तियों को नागरिकता दे रहा है। इस कानून में अगर बाहर से आए मुसलमानों को नागरिकता का प्रावधान किया गया है तो इस मुद्दे पर सरकार का रुख एकदम स्पष्ट है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में मुस्लिम प्रताड़ित नहीं हैं।
इन देशों में गैर-मुस्लिम ही प्रताड़ित हैं। वे किसी तरह अपनी जान बचाकर भारत में आते हैं। इन देशों से ऐसी खबरें भी आती हैं, जो विचलित करती हैं। इसलिए विपक्षी दलों की जिम्मेदारी है कि वह ओछी राजनीति के जरिए देश में अराजकता का माहौल पैदा न करें। लोकतंत्र में विपक्ष की महती भूमिका है, और वह इसका निर्वहन करते हुए सरकार से गारंटी ले कि किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होगा। इसी के साथ विपक्ष को खुद भी मुसलमानों को मुत्तमईन करना चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र में उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा।
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