प्रधानमंत्री और शाहीन बाग
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शाहीन बाग को संयोग नहीं प्रयोग कहने से इस समय देश में खलबली मची हुई है।
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किंतु गहराई और निष्पक्षता से नजर रखने वाले जानते हैं कि प्रधानमंत्री ने पूरी सूचना के आधार पर ही ऐसी बातें कही हैं। वास्तव में शाहीन बाग की पृष्ठभूमि और उसके चरित्र को देखिए तो साफ हो जाएगा कि इसमें सांप्रदायिक सद्भाव नष्ट करने का विचार निहित है। यह कहना किसी के गले नहीं उतरता कि इसके पीछे किसी राजनीतिक दल या शख्स की भूमिका नहीं है। नेपथ्य से राजनीति की भूमिका इसमें है। राजनीतिक विरोध का अर्थ सीधे मोर्चा लेना होता है।
इसके लिए किसी समुदाय को भड़का कर आगे करना तथा उसके पीछे की देशविरोधी शक्तियों को नजरअंदाज करना खतरनाक है। इससे न केवल देश की सांप्रदायिक सद्भावना, बल्कि एकता-अखंडता को भी खतरा पहुंंचता है। वोट बैंक की राजनीति इस सीमा तक जाने का मतलब है कि हमारे राजनीतिक दलों की दृष्टि संकुचित हो चुकी है। लोकतंत्र में धरना, प्रदर्शन आदि के अधिकार को कोई नकार नहीं सकता। कारण सही या गलत हो सकते हैं, पर लोगों को मान्य तरीकों से निर्धारित स्थानों पर विरोध करने का अधिकार हमारा संविधान देता है। अगर अमान्य तरीकों से करते हैं, तो कानूनी एजेंसियां इनके खिलाफ कार्रवाई करती है।
शाहीन बाग ऐसा अजीबोगरीब मामला बन गया है, जिसमें हर तरीके का अमान्य, गैर-कानूनी तथा देशविरोधी तत्व मौजूद है। यह गैर-कानूनी इसलिए है, क्योंकि इसकी न अनुमति ली गई और न ही पुलिस-प्रशासन को सूचना तक दी गई। इन्होंने सड़क से उठने की सारी अपीलें अनसुनी कर दीं। इसके पीछे निहित देशविरोधी चेहरे धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं। चाहे शरजील हो या अन्य..ये सब एक सुनियोजित साजिश के तहत काम कर रहे थे, जिसमें नागरिकता कानून का भय दिखाकर लोगों को भड़काना एवं देश भर में अशांति तथा अस्थिरता कायम करना था। वे देश के हर हिस्से में शाहीन बाग पैदा करने की रणनीति को अंजाम दे रहे थे।
पीएफआई की पूरी ताकत इसके पीछे थी, जिसका एकमात्र लक्ष्य ज्यादा-से-ज्यादा हिंसा कराना था। इस परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री का यह कहना सही है कि अगर इनको छूट दी गई तो ये अन्य जगह भी सड़कों पर बैठ सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि शाहीन बाग को तत्काल खाली कराकर दूसरी जगह सुरक्षा के ऐसे पूर्वोपाय किए जाएं कि किसी को इसकी पुनरावृत्ति करने की साजिश में सफलता न मिले।
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