ननकाना साहिब पर उबाल
पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा ननकाना साहिब घटनाक्रम को लेकर भारत में पैदा उबाल बिल्कुल स्वाभाविक है।
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ननकाना साहिब गुरु नानक देव की जन्मस्थली है। इस कारण यह दुनिया भर के सिखों के साथ हिंदुओं के बड़े वर्ग के लिए सर्वाधिक पवित्र स्थलों में से एक है।
ऐसे स्थान को यदि धार्मिंक कट्टरपंथियों का उन्मादित भीड़ घेरे में लेकर पत्थरबाजी एवं आक्रामक धर्म विरोधी नारों से आतंक की स्थिति पैदा कर दे, गुरु द्वारे में उपस्थित लोग भीड़ का बंधक बन जाएं तो आक्रोश पैदा होगा ही। वहां न केवल निरंतर चलने वाला कीर्तन रुक गया, बल्कि गुरु गोविन्द सिंह जयंती पर आयोजित होने वाले प्रकाश उत्सव की योजना भी रोक देनी पड़ी। यह किसी सामान्य स्थिति का परिचायक नहीं है। भारत सरकार ने अपनी ओर से कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सिखों एवं गुरु द्वारों की पूरी सुरक्षा देने की मांग पाकिस्तान से की है।
हालांकि यह एक प्रमुख धार्मिंक स्थल पर हमले की घटना थी और इसका वीडियो वायरल हो गया, इसलिए पूरी दुनिया का ध्यान इसकी ओर आया है, अन्यथा पाकिस्तान में धार्मिंक अल्पसंख्यकों के श्रद्धास्थलों के साथ वहां हो रहे र्दुव्यवहारों तथा उनको ध्वस्त कर देने तक की घटनाएं आम हैं। यही नहीं वहां धार्मिंक अल्पसंख्यकों की लड़कियों का धर्म परिवर्तन कर निकाह करने की घटनाएं लगातार हो रहीं हैं। इस घटना के पीछे भी ननकाना के एक गुरु द्वारे के ग्रंथि की पुत्री का अपहरण कर उसके धर्मपरिवर्तन तथा निकाह का मामला ही था।
उपद्रवी भीड़ कह रही थी कि सिख अपनी लड़कियों की स्वेच्छा से किए गए धर्मपरिवर्तन और निकाह के खिलाफ आवाज उठाकर गलत कर रहे हैं। सवाल है कि क्या वे विरोध भी न करें? अगर वे विरोध करें तो क्या उनके धर्मस्थलों पर इस तरह हमला किया जाएगा? जाहिर है, अब भारत के नेताओं को पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों तथा उनके साथ वहां हो रहे व्यवहारों के प्रति अपनी नीतियां स्पष्ट करने की जरूरत है। ननकाना साहिब घटनाक्रम ने नागरिकता संशोधन कानून की अपरिहार्यता साबित की है। एक ओर पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया जाए दूसरी ओर हमारे यहां ऐसा संवैधानिक, कानून एवं प्रशासनिक ढांचा विकसित करना ही होगा, जिसमें वहां से धार्मिंक उत्पीड़न के कारण पलायन करने वालों को भारतीय के रूप में स्वीकार किया जा सके।
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