विवेकी बनें बैंक
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह कहना महत्त्वपूर्ण है कि बैंकों में विवेक से निर्णय करने वाले अधिकारियों को सीबीआई, सीवीसी और कैग से डरने की जरूरत नहीं है।
विवेकी बनें बैंक |
पहली बार वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों के प्रमुखों की बैठक में सीबीआई के निदेशक एवं संयुक्त निदेशक को बुलाया गया था। इसके बाद वित्त मंत्री ऐसे ही प्रवर्तन निदेशालय, राजस्व खुफिया निदेशालय और आयकर विभाग के अधिकारियों के साथ भी बैठक करेंगी।
वस्तुत: बैंक में धोखाधड़ी के मामले को लेकर हो रही कानूनी कार्रवाई के कारण डर का माहौल बना हुआ है। बैंक अधिकारी कोई बड़ा फैसला करने से बच रहे हैं। आर्थिक विकास गति को आगे बढ़ाने के लिए सरकार चाहती है कि उद्योगों और कारोबारियों को कर्ज दिया जाए, लेकिन बैंक डरते हैं कि पता नहीं कोई जांच आरंभ हो जाए और वे फंस जाएं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी जो कानून बनाए और सख्ती बरती उसका चारों ओर असर है और बैंक उसमें शामिल हैं। वित्त मंत्री ने इस बैठक द्वारा डर के माहौल को खत्म करने की पहल की है।
बैठक के बाद उन्होंने जो कुछ कहा कि उसका अर्थ यही था कि कानूनी कार्रवाई भी चलती रहे और बैंक अपना काम भी बिना भय से करें इसका रास्ता निकाला जा रहा है। सीतारमरण ने कहा भी सीबीआई के अधिकारियों से तो बात की ही गई है; प्रवर्तन निदेशालय, राजस्व खुफिया निदेशालय और आयकर विभाग से यह अपील करेंगी कि बैंक अधिकारियों को धोखाधड़ी से जुड़े मामलों में सतर्कता बरतने के बारे में बताएं। उन्होंने यह कहकर कि बैंकरों को आश्वस्त किया गया है कि विवेक से लिये गए वाणिज्यिक निर्णय की संरक्षा की जाएगी सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की है।
इसी तरह नये निर्णय के अनुसार आयकर विभाग द्वारा नोटिस भेजने के लिए बनाए गए तंत्र की तरह सीबीआई भी एक तंत्र विकसित करेगा, जिससे केंद्रीय जांच एजेंसी के सभी नोटिस पर एक पंजीयन नंबर होगा जिससे अनधिकृत पत्राचार और किसी तरह के उत्पीड़न की आशंका समाप्त हो जाएगी। सरकारी बैंक भी धोखाधड़ी से जुड़ी हर प्राथमिकी से सीबीआई को एक विशेष ईमेल से अवगत कराएंगे। वित्त मंत्री का यह कहना सही है कि जिम्मेदार लोगों के विरु द्ध कार्रवाई के दौरान सीबीआई को उचित वाणिज्यिक निर्णय और दोषपूर्ण निर्णय के बीच अंतर करना चाहिए। देखते हैं इसका कितना असर होता है।
Tweet |