चैंपियन हम्पी

Last Updated 31 Dec 2019 12:16:29 AM IST

क्रिकेट के इस दीवाने देश में कभी-कभी अन्य खेलों में ऐसी उपलब्धियां हासिल की जाती हैं कि उनसे क्रिकेट भी पीछे छूटता नजर आता है।


चैंपियन हम्पी

कोनेरू हम्पी ने महिलाओं का विश्व रैपिड शतरंज खिताब जीतकर यह उपलब्धि हासिल की है। हंपी ने मास्को में लेई तिंगजी को हराकर यह खिताब हासिल किया है। यह खिताब जीतने वाली वह दूसरी भारतीय खिलाड़ी हैं। इससे पहले विनाथन आनंद 2003 और 2017 में यह खिताब जीत चुके हैं। कोनेरू हंपी के लिए यह सफलता इसलिए भी मायने रखती है, क्योंकि वह बच्चे के जन्म की वजह से दो साल नदारद रहने के बाद इसी साल ही प्रतियोगात्मक शतरंज में लौटी हैं।

इस माह की शुरुआत में ही वह फीडे महिला शतरंज ग्रां प्री सीरीज को जीतकर रंगत में आने का संकेत दे चुकी थीं और अब यह खिताब जीतकर शिखर पर पहुंच गई हैं। इस खिताबी सफलता से हंपी को 30 ईएलओ अंक मिले हैं, इससे वह विश्व की नंबर तीन खिलाड़ी हैं। कोनेरू को आमतौर पर क्लासिकल शतरंज का विशेषज्ञ माना जाता है। पर कोच की जिम्मेदारी निभाने वाले पिता कोनेरू अशोक ने सही टिप्स देकर बेटी को विश्व चैंपियन बना दिया है। कोनेरू की इस सफलता से युवा शतरंज खिलाड़ियों को बेहतर प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिलेगी। हम सभी जानते हैं कि भारतीय शतरंज को नई दिशा देने वाले विनाथन आनंद हैं।

आनंद ने छह बार क्लासिकल शतरंज का विश्व खिताब जीतकर देश में शतरंज खिलाड़ियों की बाढ़ ला दी। एक समय था, जब देश में एक भी ग्रैंडमास्टर नहीं हुआ करता था। प्रवीण थिप्से ग्रैंडमास्टर नॉर्म पाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी थे। लेकिन आनंद 1988 में देश के पहले ग्रैंडमास्टर बने। देश की शतरंज में आए इस बदलाव को हम इस तरह समझ सकते हैं कि पिछले साल के आखिर में गुकेश के ग्रैंडमास्टर बनने पर देश के ग्रैंडमास्टर्स की संख्या 59 तक पहुंच गई थी।

सही मायनों में पिछले दो दशकों में देश की शतरंज में क्रांति हुई है। आनंद के 1988 में ग्रैंडमास्टर बनने के बाद 2000 तक देश के पास सिर्फ पांच ग्रैंडमास्टर्स ही थे। लेकिन पिछले 19 सालों में इसमें 54 ग्रैंडमास्टर्स का इजाफा हुआ है। अब देखने वाली बात यह होगी कि कोनेरू हंपी का रेपिड शतरंज का विश्व चैंपियन बनना कितने बच्चों को प्रेरित कर पाता है।



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