कांग्रेस की दमदारी
कांग्रेस ने ‘भारत बचाओ रैली’ के जरिये एक बार फिर सक्रिय होने का अहसास कराया है।
कांग्रेस की दमदारी |
सक्रिय इस मायने में की रैली में जुटी भारी भीड़ और मंच से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर जुबानी हमला करना पार्टी कार्यकर्ताओं में नई जान फूंक गया है। जिस पार्टी को इस बार के लोक सभा चुनाव के बाद थका हुआ, बंटा हुआ और निस्तेज मान लिया गया, वह अब फिर से ऊर्जावान होकर दिल्ली की सल्तनत पर काबिज सरकार को विभिन्न मसलों पर घेरने की रणनीति पर काम कर रही है।
रैली से वैसे तो कई संदेश निकलते दिखे, मगर जिस चतुराई से पार्टी के शीर्ष नेताओं ने मोदी और शाह की तानाशाही छवि और उनके फैसलों को लेकर देशभर में जारी बवाल और हिंसा के लिए उन्हें जिम्मेदार बताया, इसे ध्यान में रखने की जरूरत है। देश में अंधेर नगरी, चौपट राजा और लोकतंत्र खतरे में है जैसी बात कहकर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि भाजपा का विकल्प कांग्रेस ही है और जनता को इस बारे में इत्मीनान से बताने की फौरी जरूरत है।
दरअसल, कांग्रेस में हाल के महीनों में मुद्दों को लेकर या केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर वह आक्रामकता नहीं दिख रही थी, जिसकी जरूरत मुख्य विपक्षी पार्टी में होनी चाहिए। वैसे भी सिर्फ गाल बजाने से पार्टी का भला नहीं होगा। जनता में भरोसा जगाने और उनका हमदर्द बनने के लिए सड़क पर उतरकर लड़ाई लड़ने की दरकार है। हालांकि आजकल वातानुकूलित कमरों में बैठकर सियासी संग्राम को अंजाम देने का काम कई पार्टियां कर रहीं हैं। सो, जनता का विश्वास भी ऐसे राजनीतिक दलों को मयस्सर नहीं हो रहा है।
इस लिहाज से अगर कांग्रेस को अपने स्वर्णिम अतीत को एक बार फिर से वापस पाना है तो उसे संजीदगी से अंजाम देना होगा। कहने का आशय है कि पार्टी को सड़कों पर उतरना होगा। सरकार की नीतियों की विफलता को न केवल उजागर करना होगा, वरन आमजन तक उसे आसानी और मजबूती से पहुंचाना होगा। विपक्ष का काम भी दरअसल यही है। अगर विपक्ष की भूमिका सतही और लिजलिजी रहेगी तो सत्ता में बैठे लोग बेलगाम हो जाएंगे। और यह बात न तो लोकतंत्र के लिए और न देश-समाज के लिए मुफीद होगी। चुनांचे लोकतंत्र में विपक्ष की आवाज का इकबाल बना रहे, यह बेहद जरूरी है।
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