गुस्से में जवान

Last Updated 06 Dec 2019 01:42:36 AM IST

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले में स्थित आइटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल) के शिविर में जवानों के बीच हुई आपसी खूनी संघर्ष अत्यंत गंभीर और चिंतनीय घटना है।


गुस्से में जवान

इस खूनी संघर्ष में 6 जवानों की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से जख्मी हो गए। यह घटना आईटीबीपी में व्याप्त कुंठा, हताशा और जवानों के बीच आपसी रंजिश की ओर संकेत करता है।

हालांकि इस पूरी घटना की जो रिपोर्ट सामने आई है वह परस्परविरोधी है, इसलिए अभी यह कहना मुश्किल है कि आपसी नोकझोंक के बाद ऐसा क्या हुआ कि आइटीबीपी की पैंतालिसवीं बटालियन के शिविर में जवान मसुदुल रहमान अपना मानसिक संतुलन खो बैठा और उसने अपने साथियों के ऊपर अचानक गोलीबारी शुरू कर दी।

दरअसल, यह मामला इसलिए भी ज्यादा गंभीर और खतरनाक है क्योंकि गोलीबारी शुरू करने वाला जवान विशेष समुदाय का था। जाहिर है कि इस मामले की गहराई से निष्पक्ष जांच होनी चाहिए कि घरेलू मोच्रे पर आतंकवाद, नक्सलवाद और सीमावर्ती क्षेत्रों में दुश्मनों से देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले जवान अपने साथियों की हत्या करके अपराधी कैसे बन जाते हैं? हालांकि अर्धसैनिक बल के जवानों के बीच इससे पहले भी कई बार खूनी संघर्ष हो चुके हैं।

दो साल पहले सीआरपीएफ के शिविर में ऐसी दो घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें जवानों ने अपने साथियों को गोली मार दी थी। आमतौर पर इस तरह की घटनाओं के पीछे जवानों को छुट्टी न मिल पाना बड़ा कारण माना जाता है। नारायणपुर की वारदात के बारे में भी यही कहा जा रहा है कि मसुदुल रहमान ने अपने पारिवारिक समारोह में शामिल होने के लिए छुट्टी की दरख्वास्त दी थी, मगर उसकी छुट्टी मंजूर नहीं हो पाई थी। लेकिन दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू का कहना है कि इस घटना के पीछे छुट्टी बड़ा कारण नहीं है।

अब सचाई क्या है, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा, किंतु अर्धसैनिक बलों में इस तरह के आपसी खूनी संघर्ष की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यह सच है कि जवान विपरीत हालात में अपने प्रियजनों से दूर रहकर अपनी कठिन जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं। इसके चलते उनमें कुंठा और निराशा का भाव पैदा होना स्वाभाविक है। सरकार और अर्धसैनिक बलों के उच्च अधिकारियों को जवानों की परेशानियों का त्वरित समाधान ढूंढना होगा।



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