तोड़-जोड़ का महाघटाव

Last Updated 27 Nov 2019 02:40:26 AM IST

महाराष्ट्र की राजनीति में बदलाव भले तेजी से हुआ हो, लेकिन अनपेक्षित नहीं कहा जा सकता।


तोड़-जोड़ का महाघटाव

दो दिनों के राजनीतिक घटनाक्रम से साफ हो गया था कि देवेन्द्र फडणवीस के लिए विधानसभा में बहुमत पाना संभव नहीं होगा। अजित पवार के फडणवीस के साथ शपथ ग्रहण करने के बाद शरद पवार के सामने अपनी साख का प्रश्न खड़ा हो गया था। इसलिए उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी।

होटल हयात में तीनों दलों राकांपा, शिवसेना और कांग्रेस के विधायकों को इकट्ठा करना, उनको पाला न बदलने की शपथ दिलवाना एक तरह से शक्ति परीक्षण ही था। अजित के सामने स्पष्ट हो गया कि जिन विधायकों के बल पर उन्होंने भाजपा के साथ सरकार बनाने का निर्णय किया वे बदली परिस्थितियों में उनके साथ नहीं आ सकते। वैसे शरद पवार ने इसके साथ अजित को वापस लाने के लिए भी अपने लोग लगा दिए थे, जो उन्हें समझाने में सफल रहे।

जब उन्होंने मुख्यमंत्री फडणवीस को इस्तीफा दे दिया तो कुछ बचा ही नहीं था। उन्हें भी पद त्याग करना ही था। हालांकि इसे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का प्रभाव नहीं कह सकते।  सर्वोच्च न्यायालय विधानसभा में बहुमत परीक्षण का फैसला देगा इसका संकेत मिल गया था। अजित अड़े रहते तो शायद फडणवीस इस्तीफा नहीं देते। प्रश्न है कि महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ हुआ और आगे जो कुछ होगा उसे कैसे देखा जाए? इसे  दुर्भाग्यपूर्ण कहना होगा। मतदाताओं ने भाजपा एवं शिवसेना गठबंधन को बहुमत दिया था।

चुनाव परिणाम आने तक वर्तमान स्थिति की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। अचानक शिवसेना ने आधे-आधे समय मुख्यमंत्री की जिद कर दी। तो बात बिगड़ गई। शिवसेना भाजपा से बात करने की जगह शरद पवार तथा राकांपा नेताओं से बात करती रही। शरद पवार ने सोच-समझकर कदम बढ़ाया और जब शिवसेना राजग से अलग हो गई तो सरकार बनाने पर बातचीत शुरू की।

अपना मुख्यमंत्री बनाने का शिवसेना की मांग पूरी हो रही है। तीनों दलों के पास सामान्य बहुमत से ज्यादा की संख्या है। लेकिन इसे किसी तरह नैतिक गठबंधन नहीं कहा जा सकता। शिवसेना जिस उग्र हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करती रही है, उससे दूर हटे बिना इस सरकार का चलना मुश्किल होगा। अगर वह दूर हटती है, जिसकी संभावना है, तो फिर उसके कार्यकर्ता और समर्थक उसके साथ उसी तरह बंधे रहेंगे? यह एक बड़ा प्रश्न बनकर खड़ा रहेगा। कांग्रेस के लिए भी शिवसेना के साथ जाने का तार्किक उत्तर देना कठिन होगा।



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