सुरक्षा पर सियासी रार
कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी उनके पुत्र राहुल गांधी एवं पुत्री प्रियंका वाड्रा का एसपीजी सुरक्षा हटाया जाना जिस तरह का एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना है उसे स्वाभाविक नहीं माना जा सकता।
सुरक्षा पर सियासी रार |
सरकार ने जिस दिन यह फैसला किया उस दिन तो कांग्रेस के नेताओं ने इसके विरु द्ध बयान दिया ही संसद के दोनों सदनों में इसे जोरदार ढंग से उठाया गया। इस विवाद के बीच जो सूचना है सरकार एक विधेयक संसद में ला रही है जिसके पारित होने के बाद एसपीजी सुरक्षा केवल प्रधानमंत्री तक सीमित रह जाएगी। नेताओं की सुरक्षा व्यवस्था सरकारों की जिम्मेवारी है और समय-समय पर उसकी कुछ व्यवस्थाएं भी होती रही हैं।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री और प्रमुख नेताओं की सुरक्षा गंभीर विमर्श का मुद्दा बना था। 1988 में एसपीजी संबंधित कानून उसी की देन है। राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री नहीं रहे तो उनकी एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली गई किंतु उनकी हत्या के बाद फिर से एसपीजी कानून में संशोधन हुआ और उनके परिवार को इसके सुरक्षा घेरे में लाया गया।
हालांकि इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा एवं मनमोहन सिंह तक की एसपीजी सुरक्षा वापस हुई। उस पर कभी हंगामा नहीं हुआ। गृह मंत्रालय किसी भी नेता या व्यक्ति के सुरक्षा खतरे की समीक्षा करता है और उसके अनुसार उसकी सुरक्षा व्यवस्था का निर्णय होता है। जो जेड प्लस सुरक्षा सोनिया, राहुल एवं प्रियंका को मिला है वह भी उच्चतम स्तर का है। प्रश्न है कि जब उनको एसपीजी के बाद दूसरे उच्च स्तर की सुरक्षा दी जा रही है तो फिर कांग्रेस पार्टी एसपीजी को लेकर इतना हंगामा क्यों मचा रही है?
प्रधानमंत्री के अलावा जो महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों को जेड प्लस, जेड, वाई, वाई प्लस..सुरक्षा के तहत रखा गया है। इससे किसी को शिकायत नहीं होनी चाहिए। वस्तुत: हमारे देश में खतरे को देखते हुए जो सुरक्षा वीआईपी को दिया गया वह स्टेटस स्टेटस सिंबल बन गया। शायद कांग्रेस पार्टी के नेताओं को लगता है कि एसपीजी सुरक्षा हटाने से उनकी पार्टी के प्रथम परिवार का कद छोटा हुआ हुआ है।
किसी तरह की सुरक्षा दिए जाने का एक ही आधार होना चाहिए-संबंधित व्यक्ति की जान को खतरा कितना है? सरकार का दायित्व सुरक्षा समीक्षा के आधार पर उपयुक्त सुरक्षा देना है। हमारा मानना है कि इन तीनों को जो सुरक्षा दी गई है वह सही है।
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