आतंकी खतरा
राज्यों के आतंकवाद विरोधी दस्ते की राजधानी दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में आतंकवाद का जैसा चित्र प्रस्तुत किया गया वह अगर सरकार, पुलिस और न्यायपालिका को सचेत करने वाला है, तो एक नागरिक के रूप में हमारी जिम्मेवारी का भी अहसास कराता है।
आतंकी खतरा |
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की यह बात तो सही है कि न्यायालय में आतंकवादियों के विरुद्ध गवाह लाना अत्यंत कठिन है। इसलिए आतंकवादियों के विरु द्ध मुकदमे में न्यायिक प्रक्रिया में बदलाव आवश्यक है।
यह इसलिए जरूरी हो गया है कि कई आतंकवादी संगठन भारत में आतंकवाद फैलाने का काम कर रहे हैं। इनमें जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी), आईएस से प्रभावित तथा खालिस्तानी संगठन शामिल हैं। जेएमबी बांग्लादेश में सक्रिय आतंकी संगठन है, और यह प्रतिबंधित है। इसकी स्थापना 90 के दशक में हुई थी। पिछले कुछ वर्षो में इसकी गतिविधियां काफी बढ़ गई हैं।
इसे पाकिस्तान से फंडिंग होती है। भारत में जेएमबी ने अपनी गतिविधियां सबसे पहले 2007 में प. बंगाल और असम में शुरू की थीं। अब उसका विस्तार झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों में देखा गया है। अगर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की मानी जाए तो बांग्लादेशी प्रवासियों की आड़ लेकर जेएमबी अपनी गतिविधियां बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इस रिपोर्ट से यकीनन रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि इन्होंने कर्नाटक में रॉकेट लांचर का भी परीक्षण किया।
केवल बेंगलुरू में 22 के आसपास ठिकाने स्थापित किए। यह मानकर चल सकते हैं कि अगर एनआईए के पास आतंकवादी समूहों के विस्तार की जानकारियां हैं, तो फिर कार्रवाई भी हो रही होगी। इस समय एनआईए का राज्यों के आतंकवाद निरोधक दस्तों के साथ अच्छा तालमेल है। खुफिया नेशनल ग्रीड तथा बहुएजेंसी केंद्र के कारण खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान भी पहले से ज्यादा बेहतर है।
वास्तव में आतंकवाद ऐसा खतरा है, जिसका सामना संपूर्ण देश को एकजुट किए बगैर नहीं हो सकता। केंद्र एवं राज्य सरकारें, दोनों की सुरक्षा एजेंसियों को मिलकर ऑपरेशन चलाते रहना होगा। पाकिस्तान से तो सहयोग मिल नहीं सकता, लेकिन बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका आदि देशों के साथ सहयोग बिल्कुल संभव है। साथ ही नागरिक के नाते हमारा दायित्व भी हर समय सतर्क रहने तथा संदिग्ध गतिविधियां नजर आने पर सुरक्षा एजेंसियों को सूचित करने का है।
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