अभिजीत को नोबेल
वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने के लिए किए गए कार्यों के लिए भारतीय मूल के अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को साल दो हजार उन्नीस का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा से हर भारतीय गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
अभिजीत को नोबेल |
वास्तव में भारत जैसे पिछड़े और गरीब देश के लिए यह बड़ी उपलब्धि है कि पिछले इक्कीस साल के दौरान अर्थशास्त्र के क्षेत्र में दो भारतीय अर्थशास्त्रियों को यह सम्मान प्राप्त हुआ। सबको याद होगा कि उन्नीस सौ अनठानवे में अमत्र्य सेन नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए थे।
अभिजीत बनर्जी को उनकी फ्रांसीसी मूल की पत्नी एस्थर डुफ्लो और अमेरिकी अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर के साथ संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। अभिजीत ने भारत की आर्थिक नीतियों पर भी काम करने के साथ ही अनेक शोध-पत्रों को भी तैयार किया है जिनसे गरीबी से लड़ने की नई ताकत मिली है। नोबेल पुरस्कारों से जुड़ी रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने दावा किया है कि अभिजीत के अध्ययन का फायदा भारत के स्कूली बच्चों को मिला है।
करीब पचास लाख से ज्यादा बच्चे रेमेडियल टय़ूटरिंग (उपचारात्मक शिक्षा) के जरिए लाभान्वित हुए हैं। इस पद्धति के माध्यम से स्कूली बच्चों की मजबूती और कमजोरियों, दोनों पक्षों का पता लगाकर उस पक्ष को बेहतर बनाने की कोशिश की जाती है। वास्तव में गरीबी का एक बड़ा कारण अशिक्षा है। अभिजीत बनर्जी ने शिक्षा के क्षेत्र में जिस तरह से प्रयोगात्मक नजरिया प्रस्तुत किया है, उसे भारत समेत अनेक देशों ने अपनाया और उन्हें फायदा भी पहुंच रहा है।
भारत में आजादी के बाद से ही गरीबी उन्मूलन की दिशा में अनेक कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी भी पच्चीस फीसद लोग गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि सरकारों ने गरीबी हटाने का जो लक्ष्य निर्धारित किया उसका ईमानदारी से क्रियान्वयन नहीं किया। फिर भी भारत समेत एशिया-अफ्रीका के विभिन्न देशों की गरीबी से लड़ाई जारी है।
अभिजीत बनर्जी ने भारत में आई आर्थिक मंदी के लिए प्रधानमंत्री मोदी की विमुद्रीकरण और जीएसटी को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने वर्तमान भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति भी निराशा जाहिर की है। क्या सरकार को इस पर विचार नहीं करना चाहिए कि अभिजीत जैसे अर्थशास्त्री के प्रयोगात्मक नजरिए से भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनरोद्धार पर सलाह-मशविरा की जाए।
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