जनसंख्या विस्फोट के दुष्प्रभाव : न शुद्ध पानी, न स्वच्छ हवा

Last Updated 29 Sep 2019 05:37:57 AM IST

जहां तक पानी का संबंध है तो भारत अपने इतिहास के सबसे बड़े जल संकट से जूझ रहा है।


जनसंख्या विस्फोट के दुष्प्रभाव

देश के झील, नदी जैसे तमाम भू-पृष्ठीय जलस्रोत बुरी तरह संकटग्रस्त हैं तो दिल्ली बेंगलूरू, चेन्नई और हैदराबाद जैसे 21 बड़े शहरों में भूजल शून्य स्तर तक पहुंच रहा है। नीति आयोग द्वारा जारी समेकित जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार 2030 तक भारत की जल संबंधी मांग वर्तमान में उपलब्ध जल आपूर्ति की दुगुनी हो जाएगी। इससे करोड़ों लोगों के लिए जल संकट और गहरा हो जाएगा।

सहारा इंडिया मीडिया की पहल

यही स्थिति शुद्ध हवा की उपलब्धता की भी है। बढ़ती आबादी के कारण भारत के शहर जिस तरह से वायु प्रदूषण की चपेट में आये हैं, उसके खतरों की चिंता लगातार बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति वर्ष 3 से 4 लाख लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण से होती है। करोड़ों लोग इस प्रदूषण की चपेट में आकर विभिन्न बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
न शिक्षा, न स्वास्थ्य, न रोजगार : शिक्षा राष्ट्रीय विकास की नींव होती है, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद देश के 40 प्रतिशत बच्चे वह प्राथमिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते जिसके वे हकदार हैं। एक आंकड़े के अनुसार प्राइमरी स्कूलों में लगभग 7 लाख अध्यापकों की कमी है। उच्च शिक्षा की हालत इससे समझी जा सकती है कि बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में प्रति वर्ष 5000 नये कॉलेजों की जरूरत होती है तो वर्तमान में मात्र 1000 नये कॉलेज ही खुल पा रहे हैं। दुखद यह है कि इनमें से अधिकांश का शैक्षणिक स्तर बहुत ही निम्न है।

स्वास्थ्य सेवाओं की भी यही स्थिति है। अमेरिका में 250 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है तो भारत में प्रति 2000 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। भारत में प्रति 10,000 व्यक्तियों पर अस्पताल के मात्र 9 बिस्तर उपलब्ध हैं तो अमेरिका और चीन में यह संख्या क्रमश: 46 और 42 है। जाहिर है कि भारत अपनी आबादी को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में असमर्थ है। आगे यह असमर्थता और बढ़ेगी।

बेरोजगारी की स्थिति भी निरंतर डरावनी हो रही है। भारत में एक विशाल संख्या ऐसे लोगों की है जो बारोजगार हैं परंतु उस रोजगार से वे सिर्फ पेट भर पाते हैं, कोई अन्य सुविधा प्राप्त नहीं कर पाते। डरावनी स्थिति यह है कि बेरोजगारी की जो दर अब तक लगभग 3 प्रतिशत मानी जा रही थी वह अब दुगुनी होकर लगभग 6 प्रतिशत हो गयी है। अर्थव्यवस्था की विकास दर में आयी गिरावट के कारण निकट भविष्य में इस स्थिति में सुधार के कोई आसार नहीं है।

कानून व्यवस्था में गिरावट : बढ़ती आबादी और कानून-व्यवस्था में गिरावट का सीधा संबंध है। भारत में बढ़ती आबादी के अनुसार कानून और न्याय की व्यवस्थाओं को सही अनुपात में बनाए रखना असंभव हो गया है। अमेरिका जैसे देश में जहां प्रति एक लाख व्यक्तियों पर 300 पुलिसकर्मी हैं और वहां भी कानून-व्यवस्था का संकट खड़ा हो जाता है तो भारत जैसे देश में जहां प्रति एक लाख व्यक्तियों पर मात्र 130 पुलिसकर्मी हैं तो यहां कानून-व्यवस्था की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। आज देश की निचली अदालतों में तीन करोड़ मामले लंबित हैं। अकेले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में ही 7,26,000 मामले लंबित हैं। यह स्थिति न्याय व्यवस्था के संकट को दर्शाती है।

जनसंख्या की वर्तमान स्थिति की और अधिक उपेक्षा नहीं की जा सकती। इसे नियंत्रित करने के नीतिगत उपायों में अब लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं है। अगर स्वार्थगत कारणों से अब भी इसकी उपेक्षा करेंगे तो हम भारी तबाही को न्योता देंगे। हमारी लापरवाही हमें सामूहिक आत्महत्या की ओर ले जाएगी।

प्रभावी उपायों की सख्त जरूरत : अब जब हर ओर से यह स्पष्ट है कि जनसंख्या नियंत्रण के बिना देश का भविष्य खतरे में है तो सरकार और समाज दोनों का ही यह दायित्व बनता है कि वे इस दिशा में बिना किसी झिझक, संकोच के पहलकदमी करें। सरकार को सभी को विश्वास में लेकर प्रभावी कानून और कार्यक्रम बनाने चाहिए तो समाज को इनके सफल क्रियान्वयन में पूरा सहयोग देना चाहिए। यह इस समय की ऐतिहासिक जरूरत है।

आदर्श परिवार भविष्य का आधार : सरकार का सर्वप्रथम दायित्व यह है कि वह एक ‘आदर्श परिवार’ की परिभाषा तय करे। एक या दो बच्चों वाले ‘आदर्श परिवार’ की एक परिभाषा अब सुनिश्चित होनी ही चाहिए और इसकी अवधारणा को सभी भारतीय परिवारों का अनुकरणीय आदर्श बनाया जाना चाहिए। सरकार को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रभावी कानून भी बनाना चाहिए और इसे हर स्तर पर लागू करवाना चाहिए।

उन्हें मिले प्रोत्साहन : आदर्श परिवार की व्यवस्था को लोकप्रिय बनाने के लिए इस व्यवस्था को अपनाने वालों को हर तरह का प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए और उन्हें लगना चाहिए कि आदर्श परिवार में रहने के कारण उन्हें अनेक लाभ प्राप्त हो रहे हैं। यहां सहाराश्री की पुस्तक ‘थिंक विथ मी’ में दिये गये कुछ महत्वपूर्ण सुझावों का उल्लेख किया जा सकता है :
लोग अपने बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए बच्चे पैदा करते हैं। अगर वरिष्ठ नागरिक पेंशन योजना को आदर्श परिवार के लिए लागू कर दिया जाये तो इसके वांछित परिणाम प्राप्त होंगे। इस तरह की योजना में कॉरपोरेट क्षेत्र को भी शामिल किया जा सकता है।

आदर्श परिवार को शिशु के जन्म और उसके पालन-पोषण से संबंधित सभी सेवाएं सरकारी स्तर पर नि:शुल्क उपलब्ध करायी जाएं।

आदर्श परिवार को प्राथमिक शिक्षा से लेकर अभियांत्रिकी, प्रबंधन आदि की उच्च स्तरीय शिक्षा तक रियायत दी जाये और रोजगार संबंधी प्रशिक्षण उन्हें नि:शुल्क प्रदान किया जाये। इसके साथ ही उनके लिए सरकारी तथा निजी क्षेत्रों में रोजगार की सुरक्षा सुनिश्चित की जाये। विभिन्न सेवाओं में उन्हें आरक्षण की सुविधा भी प्रदान की जा सकती है।

आदर्श परिवार को छोटे-बड़े व्यवसाय करने हेतु रियायती ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है और सरकार की वित्तीय सहायता योजनाओं में उन्हें प्राथमिकता दी जा सकती है।

इसी तरह स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं के मामले में भी आदर्श परिवार को निदान और उपचार संबंधी चिकित्सा सहायता उपलब्ध करायी जा सकती है तथा इन्हें बीमा की सुविधा भी उपलब्ध करायी जा सकती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि और वन से संबंधित रोजगारों में आदर्श परिवार को प्राथमिकता दी जा सकती है। कृषि से जुड़े आदर्श परिवार को उर्वरक या कृषि उपकरण आदि के लिए प्राथमिकता के साथ रियायती वित्तीय सुविधा उपलब्ध करायी जा सकती है। भूमि वितरण की स्थिति में इन्हें प्राथमिकता दी जा सकती है। भू-नियोजन और भू-प्रबंधन के लाभों में इन्हें प्राथमिकता दी जा सकती है। इसी तरह के अन्य प्रोत्साहक उपायों पर भी विचार किया जा सकता है।

कठोर प्रावधान : जनसंख्या नियंत्रण के लिए चीन के जैसे कठोर कानूनी प्रावधानों के बिना भारत में वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते। जहां एक ओर प्रोत्साहक उपाय जरूरी हैं तो साथ ही आदर्श परिवार की व्यवस्था की अवहेलना करने वाले के लिए दंड का प्रावधान भी आवश्यक है। इस संबंध में पुस्तक ‘थिंक विथ मी’ में सुझाव दिया गया है कि आदर्श परिवार की अवज्ञा करने वाले माता-पिता को न तो सरकारी स्तर पर आर्थिक लाभ मिलने चाहिए और न उन्हें किसी भी तरह का आरक्षण मिलना चाहिए। ऐसे लोगों को किसी भी तरह का सरकारी अधिकार पत्र नहीं दिया जाना चाहिए और उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति भी नहीं होनी चाहिए। उन्हें मताधिकार से भी वंचित किया जा सकता है। इस तरह के प्रावधानों को कानूनी रूप देने के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित की जा सकती है। इन प्रावधानों को लागू करने से पहले जनसंख्या नियंत्रण की व्यापक आधारभूत संरचना आवश्यकता है।

अपराधी होंगे वे : जो भी लोग आज की डरावनी परिस्थिति में जनसंख्या नियंत्रण के पक्ष में नहीं हैं या किसी न किसी बहाने से जनसंख्या वृद्धि को जायज ठहराने का प्रयास करते हैं तो उनकी ऐसी भूमिका अक्षम्य है। उन्हें अपने स्वाथरें से ऊपर उठकर भावी पीढ़ियों के भविष्य की ओर देखना चाहिए। अगर वे आज भी जनसंख्या नियंत्रण के समर्थन में नहीं उठते तो वे भविष्य के अपराधी होंगे।

अब नहीं तो कब: जनसंख्या वृद्धि की गंभीरता को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक जन आंदोलन की आवश्यकता है। इसके लिए जहां सरकार पर कारगर नीतियां बनाने का दबाव बनाया जाना चाहिए, वहां स्वैच्छिक समूहों और संगठनों को भी पहलकदमी करनी चाहिए। इस समस्या की और अधिक उपेक्षा नहीं की जा सकती।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment