सहारा इंडिया मीडिया की पहल : अब लापरवाही, आगे तबाही

Last Updated 29 Sep 2019 05:29:44 AM IST

जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि भारत की वह जटिल बीमारी है जिसका उपचार तो अलग अभी ठीक से निदान भी नहीं हो सका है।


जनसंख्या नियंत्रण पर सहारा इंडिया मीडिया की पहल

सहारा इंडिया मीडिया की पहल

भारत की जीवनधारक सारी व्यवस्थाएं बढ़ती जनसंख्या के गहरे दबाव में  हैं, लेकिन देश में अभी तक जनसंख्या नियंत्रण और इसके गुणवत्तापूर्ण विकास की नीति तक तय नहीं हो सकी है। बढ़ती आबादी के खतरों को लेकर सुगबुगाहट दशकों से चली आ रही है। ‘सहाराश्री’ सुब्रत रॉय सहारा जैसे समाजचेता लोग तो इसे जन आंदोलन का रूप देने का प्रयास कर चुके हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘थिंक विथ मी’ में लगातार बढ़ती जनसंख्या की समस्या को विस्तार से उठाया है। इस तरह के प्रयास व्यक्तिगत स्तर पर कम ही हुए हैं।

भारत में जनसंख्या नियंत्रण के कुछ प्रभावी-निष्प्रभावी प्रयोग तो हुए हैं, लेकिन अब हालत यह है कि हम अगले कुछ वर्षों में दुनिया की विशालतम आबादी वाले देश चीन को भी पीछे छोड़ने जा रहे हैं। गत 15 अगस्त को जब प्रधानमंत्री ने अपने लाल किले के भाषण में जनसंख्या वृद्धि की समस्या का उल्लेख किया था तो उम्मीद बंधी थी कि सरकार कोई स्पष्ट नीति लेकर आएगी और उसके क्रियान्वयन की संरचना तैयार करेगी, लेकिन अभी तक ऐेसा कुछ नहीं हुआ। ऐसी हालत में यह आवश्यक है कि जनसंख्या वृद्धि के भयावह भावी परिणामों पर एक नजर डाल ली जाये।

भयावह परिदृश्य : पिछले 70 वर्षों में हमारी जनसंख्या में चौगुनी वृद्धि हुई है, लेकिन चीन की जनसंख्या नियंत्रण नीति के कारण मात्र इतनी ही अवधि में दोगुनी वृद्धि हुई है। चीन ने जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी उपाय किये और अपनी आर्थिक नीतियों का निर्माण अर्थव्यवस्था और जनसंख्या में संतुलन बिठाने की नीति के साथ किया। इसका परिणाम आज चीन की प्रगति में परिलक्षित हो रहा है। इधर भारत में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में बचत और पूंजी निर्माण की दर बहुत कम है, जिसके कारण समूची जनसंख्या की आधारभूत जरूरतों को पूरा करना लगातार कठिन हो रहा है। भविष्य में तो यह असंभव हो जाएगा। भारत में जनसंख्या वृद्धि का सर्वाधिक चिंताजनक पहलू यह है कि जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है लोगों की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है यानी जिन वर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है वे कुशल, सक्षम एवं गुण संपन्न बनने के मूलभूत संसाधनों से पूरी तरह वंचित हैं। यह डरावना संकेत है।
आंकड़ों की जुबान समझिए : विश्व भू-भाग का केवल 2.4 प्रतिशत भारत के पास है जबकि वैश्विक आबादी में उसकी भागीदारी लगभग 18 प्रतिशत है। अगर चीन से तुलना करें तो चीन की आबादी 1 अरब 40 करोड़ है और उसका निवास्य यानी रहने लायक भू-भाग लगभग 93 लाख वर्ग किलोमीटर है, जबकि भारत की आबादी 1 अरब 35 करोड़ है किंतु उसका रहने लायक भू-भाग केवल 34 लाख वर्ग किलोमीटर है। अमेरिका में आबादी का घनत्व 35.32 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है तो भारत में यह घनत्व 416 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। शहरी भारत में तो एक वर्ग किलोमीटर में 7000 लोग रहते हैं और इसमें भी निरंतर वृद्धि हो रही है।
सिमटती धरती, लुप्त होते जंगल : बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के प्रयासों में कृषि योग्य भूमि पर विपरीत असर पड़ा है। एक अनुमान के अनुसार कृषि भूमि का 40 प्रतिशत हिस्सा क्षरण से ग्रस्त हो गया है यानी इस भूमि की उत्पादन क्षमता घट गयी है। इसका एक सबसे बड़ा कारण भारत के वन क्षेत्र का लगातार कम होना है। आज भारत के कुल मूल वन क्षेत्र का 40 प्रतिशत नष्ट हो चुका है जिसके कारण पर्यावरण संबंधी गंभीर समस्याएं खड़ी हो गयी हैं। इस समस्या के चलते खाद्यान्न का संकट भी आसन्न है।

विभांशु दिव्याल


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