दबाव में पाकिस्तान
इस बात का पहले से अंदाजा था कि कश्मीर को विशेष दरजा देने वाले अनुच्छेद 370 को भारत द्वारा हटाने पर पाकिस्तान की ओर से प्रतिक्रिया होगी, और वैसा ही हुआ।
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उसने पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया को निष्कासित कर दिया। इस तरह उसने भारत के साथ राजनयिक संबंध घटाकर संवाद की संभावना को और क्षीण कर दिया है।
इस क्रम में उसने और भी फैसले लिये; जैसे संयुक्त राष्ट्र में अनुच्छेद 370 के मसले को ले जाना, द्विपक्षीय व्यापार का निलंबन, समझौता एक्सप्रेस को बाघा सीमा पर रोक देना इत्यादि। पाक का यह कदम आंतरिक राजनीति से प्रेरित हो सकता है, लेकिन साथ ही उसकी रणनीति दो बिन्दुओं के इर्द-गिर्द केंद्रित है- एक राजनयिक माध्यमों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ शोर मचाकर उसकी छवि को खराब करना, इस तरह उस पर दबाव डालना।
और, दूसरे भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देना। अपने पहले प्रयास में वह अमेरिका से उम्मीद करेगा कि उसे उसका समर्थन मिल जाए, लेकिन अमेरिका ने पहले ही इसे भारत का आंतरिक मसला बताकर पाकिस्तान को झटका दे दिया है। हां, उसने व्यक्तिगत अधिकार के सम्मान की अपेक्षा जरूर की है। इसे अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को खुश करने की कोशिश माना जा रहा है, क्योंकि अफगानिस्तान समस्या के समाधान में उसे पाकिस्तान की मदद की दरकार है। वह पाकिस्तान पर बार-बार आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए दबाव भी डाल रहा है।
अगर पाकिस्तान ने आतंक के वित्तपोषण के मामले में वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) की अपेक्षा के मुताबिक आचरण नहीं किया, तो उसे काली सूची में डाला जा सकता है। इससे उसकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। अनुच्छेद 370 पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की ‘पुलवामा जैसे और हमले’ की टिप्पणी से यही प्रतीत होता है कि वह कश्मीर में अशांति को बढ़ते देखना चाहते हैं, साथ ही जिम्मेदारी से बचना भी चाहते हैं। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं।
पाकिस्तान को यह स्मरण रखना चाहिए कि बालाकोट की कार्रवाई ने भारत की वर्षो पुरानी नीतिगत जड़ता को तोड़ दिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि देश का जनमानस इस समय सरकार के साथ है और वह कश्मीर मसले का स्थायी समाधान चाहता है। अगर अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां प्रतिकूल होती हैं, तो भी सरकार को दृढ़ता से अपने फैसले पर कायम रहना होगा। परीक्षा की घड़ी बार-बार नहीं आती है।
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