बहुस्तरीय इलाज चाहिए
रिजर्व बैंक ने लगातार रेपो रेट में कमी जारी रखी। रेपो रेट वह रेट है जिस रेट पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को कर्ज मुहैया कराता है।
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इस रेट के कम होने का मतलब है कि बैंकों द्वारा वसूली जाने वाली ब्याज दर कम होनी चाहिए। रिजर्व बैंक ने इसमें दशमलव 35 बिंदु की कमी की है। अब यह 5.4 प्रतिशत है।
गत 9 वर्षो में यह अब तक कि सबसे कम दर है। इसके अलावा, 2019-20 में विकास दर के 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है रिजर्व बैंक ने। पहले यह अनुमान ज्यादा विकास का था। कुल मिलाकर रिजर्व बैंक का अहसास है कि आर्थिक सुस्ती का दौर चल रहा है। रिजर्व बैंक चाहता है कि सस्ते कर्ज से निवेश बढ़े। तमाम कजरे की मासिक किश्तें कम हों। किश्त कम होने से तमाम वस्तुओं की मांग बढ़े तो आर्थिक सुस्ती दूर हो। रिजर्व बैंक के हाथ में जो है वह रिजर्व बैंक कर रहा है।
पर भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत उस मरीज की तरह है, जिसका इलाज बहुत सारे डॉक्टरों की टीम द्वारा किया जाना है। कोई मरीज को बेहोश करता है, कोई दिल खोलता है। कोई पैरों का फ्रैक्चर सही करता है। रिजर्व बैंक ने अपनी भूमिका निभा दी है। पर इतना भर काफी नहीं है। अब केंद्र सरकार को भी कुछ करना होगा। तमाम वजहों से ऑटो क्षेत्र मंदी से जूझ रहा है। इस उद्योग पर कर का बोझ किस तरह से कम किया जा सकता है, यह सवाल अहम है। अर्थव्यवस्था में ऐसे हालात पैदा किए जाएं कि बहुतों की जेब में कुछ रकम आए। रकम जेब में आएगी तो तमाम वस्तुएं बिकेंगी।
अर्थव्यवस्था मांग के संकट से जूझ रही है। मांग को बढ़ाना बहुत सरकार और देश के आर्थिक व्यवस्था को समझने वालों के लिए बड़ी चुनौती है। मंदी की आहट में कश्मीर का घटनाक्रम चिंता और तनाव को बढ़ा रहा है। पाकिस्तान की तरफ से कारोबार बंदी की घोषणा का कोई ठोस मतलब नहीं है। पर इससे भारत पाक संबंध अनिश्चितता के नये दौर में चले गए हैं।
भारत पाक संबंध से जुड़ी चिंताएं निकट भविष्य में खत्म होने के आसार बिल्कुल नहीं दिखते हैं। हां एक खबर अर्थव्यवस्था के लिए शुभ है कि कच्चे तेल के भाव ग्लोबल बाजार में कम हो रहे हैं। मगर सिर्फ यह अच्छी खबर उन नकारात्मक लक्षणों को नहीं मिटा सकती जो इस समय दिखायी पड़ रहे हैं। कुल मिलाकर सरकार को तमाम क्षेत्रों में मांग को मजबूत करने के बारे में जल्दी और ठोस तरीके से सोचना चाहिए।
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