तंत्र की विफलता
उन्नाव बलात्कार पीड़िता के साथ पिछले दिनों जो कुछ हुआ वह घोर निंदा के लायक है। भारतीय जनता पार्टी के विधायक इस मामले में आरोपित हैं और जेल में हैं।
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मगर जिस तरह से पीड़िता, उसकी चाची, मौसी और वकील की कार में टक्कर मारी गई और इसे पीड़िता के परिवारवालों ने साजिश बताया है, उस पर सरकार और जांच एजेंसियों को तत्काल कुछ करने की जरूरत आन पड़ी है। चूंकि इस मामले में पहले से सीबीआई जांच चल रही है और इस ताजा प्रकरण की जांच भी सीबीआई के हवाले कर दी गई है, लिहाजा उम्मीद की जानी चाहिए कि मसले की निष्पक्षता से जांच होगी और दोषियों को ऐसी सजा का रास्ता साफ होगा, जिसे लोग सालों याद रखेंगे।
यह वाकई दिल दहलाने वाला प्रकरण है। आखिर रेप पीड़िता इंसाफ के लिए जाए तो जाए कहां? यह बात किसी से छिपी नहीं है कि लड़की से बलात्कार की घटना के करीब एक साल बाद अदालत के आदेश पर दोषियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया। और उन्हें जेल भेजा गया। मगर जिस तरह से लगातार गवाहों को धमकाया जा रहा था, उससे न्याय की बातें तो सपने जैसी हो गई थी।
व्यवस्थागत दोष हर सरकार की निशानी है। किंतु कुछ तो न्याय होते दिखना चाहिए। इस मामले में पुलिस के रंग-ढंग पर कई सवाल खड़े होते हैं। अगर पुलिस-प्रशासन के जिम्मे यह हाईप्रोफाइल मामला था तो उसने त्वरित तरीके से जांच क्यों नहीं की? पुलिस यह कहकर अपना बचाव नहीं कर सकती की सत्ता से जुड़े विधायक का मामला होने के चलते उन पर काफी दबाव था तो यह बेहद शर्मनाक है। पुलिसिया कार्यशैली को जानने-समझने वाले यह बखूबी जानते हैं कि पुलिस पर काम का दबाव और सिफारिश रहते हैं।
और उन्हें वे अपने तरीके से हैंडल भी करती है। सवालों के घेरे में देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई भी है, जो करीब साल भर से मामले को देख-सुन रही है। क्या इस मामले में उसकी लापरवाही नहीं दिखती? सवाल बहुतेरे हैं। और सरकार को इस बात का जवाब हर हाल में देना ही होगा। यह सिर्फ उन्नाव पीड़िता का मसला नहीं है। देश में पूर्व में भी ऐसी वीभत्स घटना को अंजाम दिया गया है। परंतु पीड़िताओं को या तो न्याय नहीं मिल सका या काफी विलंब से मिला। सो, सरकार के इकबाल के लिए ऐसे मामलों में न्याय मिलना ज्यादा जरूरी है। केंद्र और राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकार है तो इनसे जनता की अपेक्षाएं भी काफी हैं।
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