शपथ ग्रहण में कार्यकर्ता

Last Updated 31 May 2019 06:29:34 AM IST

पश्चिम बंगाल में भाजपा भले लोक सभा चुनाव में 18 सीटों पर विजय पताका फहराकर खुश हो, मगर वह इतने भर से शांत और संतुष्ट नहीं दिखती।


शपथ ग्रहण में कार्यकर्ता

पार्टी अब 2021 में आसन्न विधानसभा चुनाव की तैयारी का ब्लू प्रिंट भी बना रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में राजनीतिक हिंसा में मारे गए पार्टी कार्यकर्ताओं के परिजनों को बुलाने के पीछे की वजह भावनात्मक से ज्यादा सियासी है।

भाजपा का आरोप है कि पंचायत और लोक सभा चुनाव के दौरान हुई हिंसा में 54 कार्यकर्ता मारे गए। और इसके पीछे सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का हाथ है। वैसे चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि राज्य में दोनों पार्टियों की तरफ से हिंसा और मारपीट की घटनाओं को अंजाम दिया जाता रहा है। हां, सत्ता में रहने की वजह से तृणमूल का पलड़ा जरूर भारी रहा है। शपथ ग्रहण समारोह में परिवार के सदस्यों को बुलाकर भाजपा ने बड़ा दांव चला है।

पार्टी को लगता है कि कार्यकर्ताओं के परिवार को सम्मान देने से बाकी कार्यकर्ताओं में उमंग, उत्साह और ऊर्जा का संचार होगा और वह ज्यादा कर्मठता और मेहनत से पार्टी की बेहतरी के लिए काम करेंगे। स्वाभाविक रूप से यह किसी भी पार्टी का नीतिगत फैसला होता है कि वह ऐसे आयोजन में किसे आमंत्रित करे और किसे नहीं? मगर बड़ा सवाल अब भी मुंह बाये खड़ा है कि बंगाल में आखिर राजनीतिक हिंसा पर विराम कब लगेगा? और इसे खत्म करने के लिए भाजपा के पास किस तरह की योजना है?

नि:संदेह राज्य में उद्योग-धंधे कम हैं या कम होते जा रहे हैं, जिस वजह से रोजगार के अवसर बन नहीं पा रहे हैं। वहीं जनसंख्या भी बढ़ रही है और खेती से फायदा हो नहीं रहा है। इन सब दुारियों से निपटने की रणनीति भाजपा को खासतौर पर बनानी होगी। सिर्फ कार्यकर्ताओं और उनके परिवार को सम्मान देने से मसला हल नहीं होगा। राज्य में भगवा रंग चटक तो हुआ है, किंतु उसे गहरा करने के वास्ते जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा। राज्य के हालात बेशक तनावपूर्ण और हिंसक हैं, मगर मारकाट और खूनी राजनीति का अंत होना ही चाहिए।

सिर्फ चुनावी फायदा लेने के लिए किसी की भावनाओं से खेलना न तो पार्टी के लिए, न प्रदेश के लिए और न लोकतंत्र के लिए मुफीद होगा। 60 के दशक से चले आ रहे राजनीतिक हत्या के चलन को बंद करना ही होगा। बेरोजगारी पर चोट के साथ सांप्रदायिक सद्भाव के रास्ते पर चलकर ही राज्य के गौरवशाली अतीत को लाया जा सकता है।



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