श्रीलंका में दंगा
पड़ोसी श्रीलंका अभी आतंकवाद के आघात से पूरी तरह उबरा भी नहीं था कि सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गया। जब श्रीलंका ने पिछले सप्ताह घोषणा किया कि देश अब आतंकवाद से मुक्त हो गया, क्योंकि सारे आतंकवादी या तो मारे गए या पकड़े गए तो दुनिया में उसकी वाहवाही हुई।
श्रीलंका में दंगा |
ऐसा करने वाला वह पहला देश बना था। किंतु पिछले कुछ वर्षो से सांप्रदायिकता की जो आग राख की नीचे सुलगती रही है और समय-समय पर प्रकट भी होती रही है वह फूट पड़ा है। चर्च पर हमले मुस्लिम आतंकवादियों ने किया था। इस कारण मुस्लिम समाज के प्रमुख लोगों ने अपील की थी कि उन सबको आतंकवादी न माना जाए, उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाए। मुस्लिम समाज ने सेना, पुलिस और प्रशासन के अनुदेश का पालन भी किया। पर सिंहलियों एवं मुस्लिमों के बीची पिछले पांच वर्षो से जगह-जगह टकराव होता रहा है। असामाजिक तत्व हर समाज में होते हैं। मुस्लिम समाज के एक दुकानदार ने सोशल मीडिया पर ऐसा पोस्ट डाला कि सिंहली समुदाय फिर हिंसक हो गया। देश के पश्चिम तटीय शहर चिलॉ में भीड़ द्वारा एक मस्जिद और मुस्लिमों की कुछ दुकानों पर हमला किए जाने के साथ दंगा भड़का और देखते-देखते यह व्यापक स्तर पर फैल गया।
पहले उत्तर पश्चिमी क्षेत्र के चार शहरों-कुलियापिटिया, हेटिपोला, बगिरिया और डूमलसूरिया में कर्फ्यू लगाया गया। जैसे ही कर्फ्यू हटा फिर हिंसा भड़क गई। फिर कर्फ्यू लगाना पड़ा। पूरा उत्तर और पश्चिम प्रांत भी हिंसा की चपेट में आ गया। हालांकि वहां की पुलिस, सेना और प्रशासन का रिकॉर्ड इस मायने में बेहतर है और बलवाइयों के साथ कड़ाई से निपटा भी जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी प्रतिबंध लगा है। बावजूद बहुसंख्यक सिंहलियों और अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच तनाव के जो मुद्दे हैं वे खत्म नहीं हो पा रहे। सो इसके कारणों में गहराई से जाकर अंतर्धारा में व्याप्त तनाव को खत्म करने के कदम उठाने होंगे। अधिकतर सिंहली बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं, जिनका मूल सिद्धांत अहिंसा है। वे अगर हिंसा को मजबूर हुए तो यह यूं ही नहीं हो सकता। श्रीलंका में भी सांप्रदायिक दंगे की शुरुआत म्यांमार में रोहिंग्याओं और बौद्धों में हिंसक संघर्ष के बाद हुई थी। यह ऐसा पहलू है, जिसे ठीक से समझा जाए तो इसका कारण साफ हो जाएगा।
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