कम मतदान की वजह
सत्रहवीं लोक सभा चुनाव का छठा चरण संपन्न हो गया। मतदान संबंधी अब तक जो आंकड़े आए हैं, उनमें कुछ अपवादों को छोड़कर देखने में आ रहा है कि मतदान के प्रतिशत में निरंतर गिरावट आ रही है।
कम मतदान की वजह |
आखिर, इस गिरावट का आशय क्या है? यह समझने से पहले जानना जरूरी है कि एक मतदाता मत डालने क्यों जाता है? स्पष्टत: या तो किसी प्रत्याशी को पसंद करता है, या फिर किसी राजनीतिक दल की नीतियों और कार्यक्रमों से प्रभावित होकर उससे जुड़ जाता है, और तब वह उसे वोट देने जाता है। दूसरी स्थिति यह होती है कि मतदाता किसी प्रत्याशी या किसी राजनीतिक दल विशेष को जीतते देखना नहीं चाहता, और उसके विरोध में अपना वोट देने जाता है।
इससे संकेत मिलता है कि ऐसे मतदाता की रुचि चुनावों में है, लेकिन बहुत बड़ी संख्या ऐसे मतदाताओं की है, जिनकी चुनावी प्रक्रिया में आस्था ही नहीं है। इसलिए वे वोट देने नहीं जाते। ऐसे मतदाता भी हैं, जो चुनावी राजनीति के प्रति आस्था तो रखते हैं, लेकिन राजनेताओं और राजनीतिक दलों के आचरण से क्षुब्ध होकर चुनावी प्रक्रिया से उनका मोहभंग हो रहा है। उनका मानना है कि ज्यादातर राजनीतिक नेता झूठ बोलते हैं, देश सेवा के नाम पर सिर्फ अपना और अपने परिवार का हित साध रहे हैं।
पहले चरण से लेकर छठे चरण तक मतदान के प्रतिशत में जो गिरावट आई है, उसकी वजह राजनीतिक दलों से मतदाताओं का मोहभंग होना है। इसे विलोमानुपाती प्रवृत्ति कहा जा सकता है अर्थात जैसे-जैसे लोगों की राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के प्रति वितृष्णा बढ़ रही है, वैसे-वैसे मतदान का प्रतिशत घट रहा है। देश की राजधानी दिल्ली का उदाहरण लिया जा सकता है।
चुनाव आयोग सहित अनेक गैर-सरकारी संगठनों ने मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए तमाम प्रयास किए। बावजूद इसके दिल्ली का मतदान प्रतिशत दो हजार चौदह के चुनाव के मुकाबले कम रहा है। यह तो नहीं माना जा सकता कि चालीस फीसद मतदाता अचानक बीमार हो गए या छुट्टियां मनाने शहर से बाहर चले गए। जाहिर है कि मतदाताओं का बड़ा वर्ग जानबूझ कर वोट डालने नहीं गया। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि मतदान का प्रतिशत इतना गिर गया कि लोकतंत्र को धक्का पहुंचा है, लेकिन इस प्रवृत्ति को रोकने की जरूरत है वरना लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
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