ट्रंप की ईरान कूटनीति
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ईरान पर दबाव बढ़ाने की नीति से दुनिया में नये तरह के तनाव की स्थितियां शक्ल लेने लगी हैं।
![]() ट्रंप की ईरान कूटनीति |
अमेरिका ने इस महीने ईरान के तमाम तेल निर्यात के रास्ते बंद कर देने की धमकी दी है और खाड़ी में अपनी नौसेना और वायु सेना की मौजूदगी बढ़ा दी है। यही नहीं, अपनी पैट्रिएट मिसाइलों का रु ख भी पश्चिम एशिया की ओर कर दिया है। इसे ईरान के राष्ट्रपति ने तो इराक युद्ध (1980-88) के दौरान से भी बुरे दौर की संज्ञा दी है। ट्रंप के इस नये तेवर से यूरोपीय देश और बाकी दुनिया भी हैरान हैं। यूरोपीय देशों के लिए तो बड़ी विडंबनापूर्ण स्थिति बन गई है। दरअसल, 2015 में बराक ओबाम सरकार के तहत ईरान के साथ परमाणु करार में अमेरिका, चीन और रूस के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी भी शामिल थे।
तब अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी की जांच-पड़ताल में यह माना गया था कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम शस्त्र निर्माण के लिए नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हैं। लेकिन ट्रंप ने गद्दी संभालने के बाद इस करार से हटने का एकतरफा ऐलान कर दिया और अब फिर जब चुनावी वर्ष आ गया है तो वे ईरान पर आर्थिक प्रतिबंधों के साथ-साथ फौजी दबाव भी बढ़ा रहे हैं। शायद दुनिया के बाकी देश और खासकर यूरोपीय देश भी इसे समझ रहे हैं कि ट्रंप दोबारा गद्दी पाने की अपनी संभावनाएं बढ़ाने के लिए ही ऐसा कर रहे हैं। यूरोपीय संघ के सामने अजीब स्थिति खड़ी हो गई है। उसने फिलहाल तो ईरान से करार जारी रखने का फैसला किया है।
हालांकि ईरान ने अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के मद्देनजर करार से पीछे हटने का संकेत दिया है। लेकिन मुश्किल यह है कि ईरान की अर्थव्यवस्था तेल के निर्यात पर निर्भर है और तेल निर्यात का लेनदेन डॉलर में होता है। वैसे, ट्रंप ईरान को नये सिरे से बातचीत करने की पेशकश कर रहे हैं मगर तेहरान अभी तैयार नहीं है। ऐसा न करने पर ट्रंप ने युद्ध छेड़ देने की भी धमकी दे डाली है और खासकर भारत को भी चेतावनी दे रहा कि वह ईरान से तेल आयात न करे। हालांकि ट्रंप ने हाल में उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण को छोटा-मोटा मानकर तवज्जो देने लायक नहीं माना लेकिन वह ईरान के मामले में सख्ती दिखाना चाहते हैं, ताकि उन्हें दोबारा गद्दी मिल जाए। जो भी हो, तनाव के ये हालात मंदी के दौर में जा रही दुनिया के लिए अच्छे नहीं हैं।
Tweet![]() |