और कसा शिंकजा
लंदन की वेस्टिमंस्टर न्यायालय द्वारा भगोड़े भारतीय हीरा व्यापारी नीरव मोदी की जमानत याचिका खारिज करना हमारी दृष्टि से निश्चय ही महत्त्वपूर्ण घटना है।
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यह उसके प्रत्यर्पण की दिशा में सफलता की ओर और आगे बढ़ना है। पंजाब नेशनल बैंक सहित कई बैंकों का करीब 13 हजार 700 करोड़ रु पये का गबन करने वाले नीरव मोदी को प्रत्यर्पित करने के लिए भारत ब्रिटेन में हरसंभव कोशिश कर रहा है। इसमें राजनयिक और न्यायिक दोनों स्तरों की कोशिशें शामिल हैं। भारत की कोशिशों के कारण ही उसे 20 मार्च को स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस द्वारा लंदन के होलबॉर्न इलाके से गिरफ्तार किया गया। 29 मार्च को उसकी जमानत याचिका खारिज होने के बाद साफ हो गया था कि न्यायालय उसे विजय माल्या की तरह मुक्त नहीं कर सकता। अब 24 मई तक उसका जेल में रहना निश्चित है। इस बीच प्रत्यर्पण निदेशालय और सीबीआई अपना प्रयास जारी रखेंगे। नीरव के भारत प्रत्यर्पण की अपील पर ही ब्रिटेन के गृह सचिव ने वहां के न्यायालय में कानूनी प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी दी थी। साफ है कि भारतीय एजेंसियों ने ब्रिटेन में नीरव के विरु द्ध अपना कानूनी पक्ष सही तरीके से रखा है।
दोनों जमानत याचिका पर फैसला देते हुए न्यायालय की टिप्पणियों से पता चलता है कि उसे बड़ी राशि का घोटाला करने वाला मान चुका है, अन्यथा ब्रिटेन में जमानत मिलना कठिन नहीं होता। माना जाता है कि वह ब्रिटेन में निवेशक वीजा पर रहा है, जिसके लिए उसने 2015 में आवेदन किया था। इसी कारण उसे वहां व्यापार करने संबंधी सारी कानूनी सुविधायें प्राप्त हो गई थीं। तो ब्रिटेन इसकी भी जांच कर रहा है। हालांकि इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि नीरव का प्रत्यर्पण भी तुरंत हो जाएगा। किंतु ब्रिटिश सरकार का मामले को पूरी गंभीरता से लेना और न्यायालय का रु ख उम्मीद अवश्य जगाता है। आज न कल नीरव का प्रत्यर्पण निश्चित है। माल्या का मामला तो काफी आगे बढ़ गया है। उसे अहसास हो गया है कि अब उसे भारत प्रत्यर्पित होने से कोई बचा नहीं सकता। भारत का लक्ष्य बैंकों की राशि की वापसी और इनको अपराध की सजा दिलवाना है ताकि ऐसे दूसरे अपराधियों तक सीधा संदेश जाए। नीरव और माल्या की दशा से ऐसे सारे भगोड़े आर्थिक अपराधियों के बीच कड़ा संदेश तो जा ही रहा है।
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