फिर ईवीएम विवाद
समझ से परे है कि आखिर, विपक्षी दलों के लिए ईवीएम इतना बड़ा मुद्दा क्यों बना हुआ है? इन्होंने फिर एक बार सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
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इनकी अपील है कि वर्तमान चुनाव में चुनाव आयोग को पचास प्रतिशत ईवीएम को वीवीपैट से मिलान करने का आदेश दिया जाए। इसी अपील के साथ पिछली बार भी ये सर्वोच्च न्यायालय गए थे। न्यायालय ने आयोग को नोटिस जारी कर पक्ष जाना। दोनों ओर की दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने माना कि ईवीएम पर संदेह की गुंजाइश नहीं है लेकिन राजनीतिक दलों की संतुष्टि के लिए हर विधानसभा से आकस्मिक तरीके से पांच ईवीएम का वीवीपैट से मिलान किया जाए।
आयोग ने अपनी ओर से हर विधानसभा क्षेत्र में एक वीवीपैट के मिलान की व्यवस्था की थी। मतगणना एजेंट जिस भी पांच ईवीएम को चाहेंगे उसका मिलान वीवीपैट से करा दिया जाएगा। यदि दोनों के आंकड़े हूबहू मिल गए तो गणना की जाएगी। ईवीएम का चयन भी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को ही करना है। चाहे एक ईवीएम का मिलान कराया जाए या पांच का, यदि उनके आंकड़ों में अंतर नहीं है तो इसका अर्थ है कि छेड़छाड़ नहीं हुई है। इसके बाद लगा था कि इस विवाद पर कम से कम वर्तमान लोक सभा चुनाव तक विराम लग गया है।
किंतु आंध्र प्रदेश चुनाव के बाद चंद्रबाबू नायडू सीधे दिल्ली आए और विपक्षी दलों की इस मुद्दे पर बैठक बुलाई जिसमें तय किया गया कि हम फिर से न्यायालय जाएंगे। वास्तव में राजनीतिक दलों का यह रवैया गैर- जिम्मेवार है। चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है। लगातार आस्त कर रहा है कि ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। जब से ईवीएम विवाद पैदा किया गया है कई मुख्य चुनाव आयुक्त आए और सेवानिवृत्त हुए।
सभी का एक ही मत था। आयोग ने ईवीएम को हैक करने या इसके साथ छेड़छाड़ साबित करने की चुनौती भी दी पर कोई नहीं आया। यह मामला जब भी सर्वोच्च न्यायालय गया विरोधियों को मुंह की खानी पड़ी। बावजूद यदि विपक्षी दल मानने को तैयार नहीं हैं, तो इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। पचास प्रतिशत ईवीएम का वीवीपैट से मिलान पर आयोग ने साफ किया था कि मतगणना के लिए काफी विस्तृत जगह चाहिए, भारी सख्या में प्रशिक्षित कर्मचारी तैयार करने होंगे तथा परिणाम में पांच से छह गुणा ज्यादा समय लग सकता है। यह बिना जरूरत की कवायद होगी। उम्मीद है कि न्यायालय गुंजाइश नहीं का ही रुख अपनाएगा।
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