खतरे के आयाम
श्रीलंका में बीते रविवार को ईसाइयों के त्योहार ईस्टर के अवसर पर गिरजाघरों और होटलों पर जो आतंकी हमले हुए उनका खुलासा धीरे-धीरे हो रहा है।
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सुरक्षा एजेंसियों की जांच से पता चल रहा है कि भारत के पड़ोसी इस प्रायद्वीप में इस्लामिक स्टेट जैसे खूंखार आतंकी संगठन ने अपना पैर पसार लिया है। यह हकीकत है तो श्रीलंका के साथ-साथ भारत के लिए भी यह खतरे की घंटी है।
श्रीलंका के रक्षा मंत्री रुवान विजयवर्धने का यह बयान बहुत महत्त्व रखता है कि कोलंबो में किया गया आतंकी हमला न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च की मस्जिदों पर किए गए हमले का बदला है। इसका आशय है कि आईएस श्रीलंका में मुस्लिमों और ईसाई समुदायों के बीच सांप्रदायिक संघर्ष की जमीन तैयार कर रहा है।
ऐसा नहीं है कि श्रीलंका में आतंकी हमला अचानक से हो गया। सचाई तो यह है कि एक दशक पूर्व श्रीलंका में सूफी मस्जिदों, दरगाहों और धार्मिक स्थलों पर हमले होने लगे थे, जो संकेत दे रहे थे कि वहां के समाज में कट्टरपंथी तत्वों का विस्तार होने लगा है। ईस्टर के मौके पर हुए हमले में करीब 359 लोगों की मौत हो चुकी है। हमला बता रहा है कि देश में कट्टरपंथी विचारधारा के विस्तार के जो संकेत मिल रहे थे, उनकी अनदेखी की गई।
ईस्टर के मौके पर हुए हमले से यह भी उजागर हुआ कि लंबे समय तक तमिल उग्रवादी संगठन लिट्टे के साथ चले गृह युद्ध की विरासत, राजनीतिक शत्रुता और सुरक्षा में बरती गई लापरवाही ने भी आतंकियों के लिए हमला करने की जमीन तैयार की। आईएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। हालांकि इस आतंकी समूह के पांव सीरिया से उखड़ चुके हैं, लेकिन इसकी विचारधारा इतनी मारक है कि श्रीलंका तक पहुंचने में देर नहीं लगी। हालांकि श्रीलंका का पुलिस प्रशासन आईएस के दावे से पूरी तरह आस्त नहीं है। उसका मानना है कि स्थानीय आतंकी समूह नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) ने हमले को अंजाम दिया है।
आतंकवाद से संबंधित विदेशी अध्येता ब्रूस हॉफमैन ने बाइस वर्ष पहले पहली बार श्रीलंका का दौरा किया था, तब उन्होंने महसूस किया था कि वहां कट्टरपंथी विचारधारा पांव जमा रही है, और इससे मुस्लिम समुदाय चिंतित है। हमले के बाद मुस्लिम समुदाय इस बात को लेकर डरा हुआ है कि उन्हें निशाना बनाया जा सकता है। वहां की सरकार को हर संभव उपाय करने की जरूरत है ताकि मुस्लिम समुदाय अपने को सुरक्षित महसूस कर सके।
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