विवाद पर लगे विराम
रक्षाअनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के अध्यक्ष डा. जी सतीश रेड्डी के स्पष्टीकरण और विस्तृत जानकारी देने के बाद भारत के उपग्रह रोधी मिसाइल परीक्षण (ए सेट) को लेकर उठाए जा रहे सारे प्रश्नों पर विराम लग जाना चाहिए।
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उन्होंने कहा है कि उपग्रह को ध्वस्त करने से पैदा हुए मलबे में से कुछ गल गए हैं, कुछ गल रहे हैं, कुछ धरती पर गिर रहे हैं और 30-35 दिनों में पूरा साफ हो जाएगा। यह दुनिया को भारत की तरह से दिया गया स्पष्ट आश्वासन है कि मलबे से अंतरिक्ष में किसी तरह का खतरा नहीं है। वास्तव में भारत ने अपना परीक्षण सारे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किया।
बड़ी क्षमता होने के बावजूद भारत ने केवल 283 किलोमीटर की ऊंचाई पर इसीलिए परीक्षण किया कि मलबा खतरनाक साबित न हो। कुछ मलबा ऊपर गया था, लेकिन वह भी नष्ट हो गया है। जाहिर है, इसके बाद इस संबंध में अब कोई संशय नहीं रहना चाहिए। रेड्डी के बयान से यह भी स्पष्ट हुआ कि भारत के पास 1000 किलोमीटर से भी कुछ ज्यादा ऊंचाई पर स्थित उपग्रहों को नष्ट करने की क्षमता है।
दूरी को लेकर भी कुछ लोग प्रश्न उठा रहे थे। कहा गया था कि इससे ऊपर के उपग्रहों के लिए फिर परीक्षण करना पड़ सकता है। जो मिसाइल दागी गई उसकी क्षमता अगर 1000 किलोमीटर की ऊंचाई से भी अधिक जाने की है तो इसका मतलब हुआ कि वहां से निचली कक्षा तक मौजूद सारे उपग्रह मारक जद में आ गए हैं। इसके बाद किसी तरह के परीक्षण की आवश्यकता नहीं है। तो यह बड़ी सामरिक क्षमता का सबूत है। देश में इस पर जो भी प्रश्न खड़े किए जाएं रेड्डी का पूरा बयान यह बताता है कि भारत ने पूरी जिम्मेवारी से परीक्षण किया।
जिन देशों के साथ अंतरिक्ष संबंध है, उनको पहले सूचना दी गई, उनका विश्वास प्राप्त किया गया। जाहिर है, इससे किसी देश के साथ हमारे संबंधों और सहयोग पर विपरीत असर पड़ने की किंचित संभावना नहीं है।
राजनीतिक प्रश्नों का जवाब यह है कि 2016 में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसकी अनुमति दे दी थी और परीक्षण कब करना है, यह पूरी तरह डीआरडीओ की तैयारी पर निर्भर था। यानी आम चुनाव के वक्त इसका परीक्षण महज संयोग है। लिहाजा, रेड्डी के वक्तव्य के बाद उठाए जा रहे प्रश्नों पर अंतिम रूप से विराम लग जाना चाहिए। राजनीतिक दलों को भी अपनी जिम्मेवारी का परिचय देते हुए इस पर नकारात्मक बोलने से बचना चाहिए।
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