एक कदम आगे
असम समझौते के करीब बत्तीस साल बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का पहला संशोधित मसौदा जारी हो गया है.
एक कदम आगे |
इसमें प्रदेश के कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से 1.9 करोड़ लोगों को भारत का वैध नागरिक माना गया है. शेष 1.39 करोड़ आवेदकों की कई स्तरों पर जांच चल रही है.
गौरतलब है कि असम में बांग्लादेश से अवैध प्रवासन करने वाले लोगों का मुद्दा बहुत पुराना है. इसके कारण वहां समय-समय पर हिंसक-अहिंसक आंदोलन होते रहे हैं. स्थानीय लोग इस अवैध प्रवासन को जनसांख्यिक हमले के तौर पर भी देखते हैं. 1979 के असम आंदोलन के दौरान यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना था.
तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी और ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के बीच हुए समझौते में तय हुआ था कि 24 मार्च, 1971 के बाद प्रदेश में अवैध ढंग से आकर रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान के लिए एनआरसी में संशोधन किया जाएगा. लेकिन इस दिशा में 2005 तक कोई काम नहीं हो सका. अंतत: उसी साल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और आसू के बीच दूसरा समझौता हुआ.
निर्णय हुआ कि एनआरसी में संशोधन किया जाए. हालांकि प्रदेश के कुछ इलाकों में हिंसा भड़कने के कारण सरकार को यह काम रोकना पड़ा. अंतत: शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के कारण नागरिकों की पहचान को व्यवस्थित करने का सिलसिला शुरू हुआ. दरअसल, 1971 के बाद असम आने वाले ज्यादातर बांग्लादेशियों के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं.
असम उच्च न्यायालय द्वारा पिछले साल दिए गए एक फैसले की वजह से पंचायतों की ओर से जारी किए गए नागरिकता प्रमाणपत्र को भी वैध नहीं माना जा रहा है. अलबत्ता, कई नागरिक संगठनों की ओर से एनआरसी के संशोधन की प्रक्रिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं. भाजपा शुरू से बांग्लादेशी घुसपैठियों का विरोध करती आ रही है. इस बार के विधान सभा चुनाव में उसने इस मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था.
जाहिर है कि उसकी सरकार बनने के बाद वहां के नागरिकों की पहचान की प्रक्रिया में काफी तेजी आई है. एनआरसी का पहला संशोधित मसौदा इसी का परिणाम है. गैर-नागरिक ठहराए जाने वाले लोगों में दहशत का माहौल है. भारत और बांग्लादेश के बीच में कोई ऐसा समझौता भी नहीं है, जिसके तहत इन अवैध प्रवासियों को वापस भेजा जा सके.
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