लंदन में हमला
ब्रिटेन की राजधानी लंदन में हुए आतंकवादी हमले में यद्यपि हताहत होने वालों की संख्या ज्यादा नहीं है, पर इसने पूरी दुनिया में दहशत का माहौल कायम किया है.
लंदन में हमला |
यह ऐसा हमला है, जिससे सुरक्षा का पहले से कोई उपाय करना कठिन है.
एक व्यक्ति काले रंग की कार से वेस्टिमंस्टर पुल पर आराम से चलते हुए अचानक लोगों को कुचलना आरंभ कर देता है और मिनटों में कोहराम मच जाता है. पिछले वर्ष फ्रांस के नीस शहर में ऐसे ही एक आतंकवादी ने ट्रक चलाकर 90 लोगों को कुचल दिया था.
वास्तव में ऐसे हमला करने वालों के लिए न किसी तरह की संगठन की आवश्यकता है और न ही किसी बड़े हथियार की. वह स्वयं ही किसी आतंकवादी संगठन से प्रभावित होकर आतंकी बनता है, अकेले ही योजना बनाकर जो कुछ उसके पास है, उसे ही हथियार में परिणत करता है और हमला कर देता है.
लंदन के हमलावर के पास कार के अलावा केवल एक चाकू था, जिससे उसने ‘हाउस ऑफ कॉमन’ के प्रवेश द्वार की ओर बढ़ते हुए एक पुलिसवाले को मार दिया. कल्पना करिए, एक व्यक्ति बिना किसी विस्फोटक के और बिना आतंकवादी हमले का प्रशिक्षण लिये इस तरह आतंक कायम कर सकता है तो फिर ऐसे अनेक लोग खड़े हो जाएं तो वे क्या कर सकते हैं?
यह तो साफ है कि ब्रिटेन की संसद के सामने हमला करके उसमें घुसने की कोशिश का अर्थ हमलावर का आधुनिक लोकतंत्र का विरोध करना है. जेहादी समूह समूची आधुनिक सभ्यता को नष्ट कर अपने तरीके का इस्लामी साम्राज्य कायम करने का सपना देख रहे हैं.
उसमें ये सफल नहीं हो सकते, किंतु दहशत पैदा करने में तो कामयाब हो ही जाते हैं. लंदन हमले ने पूरी दुनिया के सामने फिर से यह प्रश्न पैदा किया है कि आखिर आतंकवाद के इस चरित्र से कैसे निपटा जाए?
विडम्बना देखिए कि इसका कोई उत्तर किसी के पास नहीं है. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेजा मे ने इसे कायरतापूर्ण हमला करार देते हुए कहा कि इसके सामने देश झुकेगा नहीं. वाकई देश ऐसे हमले के सामने हथियार नहीं डाल सकते, परंतु इस नये तरीके के आतंक से मुकाबला अभी तक संभव नहीं दिखता और यही बड़ी चिंता की बात है.
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