एक ऐसा मैच जो चिता की राख हथियाने के लिए खेला जाता है
किसी भी खेल में जब टीमें आपस में भिड़ती हैं तो सबकी कोशिश ट्रॉफी को अपने नाम करने की होती है। आजकल कैश प्राइज के रूप में भी टूर्नामेंट होने लगे हैं, ऐसे में हर टीम की कोशिश होती है कि वह फाइनल मुकाबला जीतकर कैश प्राइज अपने नाम करे, लेकिन एक टूर्नामेंट ऐसा भी है जिसमें दो टीमें चिता की राख हथियाने के लिए खेलती हैं।
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चिता की राख पाने के लिए दो टीमों की संघर्ष की कहानी सुनने में तो अजीब लग रही होगी लेकिन यह हकीकत है। हमारे पाठक शायद यह भी सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है। भला चिता की राख पाने के लिए कौन मैच खेल सकता है। खेल के दौरान खिलाड़ियों का घायल होना आम बात है। हालांकि सभी खेलों में ऐसा नहीं होता है लेकिन क्रिकेट, फुटबॉल और हाँकी जैसे खेलों में चोट लगने की संभावना ज्यादा होती है। क्रिकेट में तो चोट लगने की वजह से कई खिलाड़ियों की मृत्यु तक हो चुकी है, लेकिन क्या आपने सुना है कि क्रिकेट का एक ऐसा मैच भी हुआ जिसमें पूरे टीम की मृत्यु हो गई थी। हमारे दर्शक यह सोच कर हैरान हो गए होंगे की पूरी की पूरी टीम की मृत्यु कैसे हो सकती है, लेकिन यहां बता दें कि यह सच है। बात पुरानी नहीं है, बल्कि बहुत पुरानी है। लगभग 141 साल पहले एक मैच के दौरान इस तरह की घटना हुई थी।
हमारे पाठकों को अच्छी तरह पता होगा कि क्रिकेट की उत्पत्ति भारत में नहीं हुई थी। इसकी उत्पत्ति इंग्लैंड में हुई थी। जबकि आज हिंदुस्तान में क्रिकेट को एक धर्म के रूप में माना जाता है। हालांकि क्रिकेट की शुरुआत 16 वीं शताब्दी में हो गई थी। लेकिन आधिकारिक रूप से इसकी शुरुआत 18 वीं सदी में हुई। पहला आधिकारिक मैच 1844 में खेला गया था। भारत में इस खेल को लेकर कितनी दीवनगी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज यह खेल शहर से लेकर गांव की गलियों तक पहुंच गया है। यही नहीं, पूरी दुनिया में क्रिकेट को संचालित करने वाले जितने भी बोर्ड हैं उनमें सबसे धनी बोर्ड, भारत का बीसीसीआई है। ख़ैर हम यहां चर्चा कर रहे हैं क्रिकेटरों की मृत्यु की।
बात 1982 की है। इंग्लैंड के ओवल क्रिकेट ग्राउंड पर ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच टेस्ट मैच चल चल रहा था। आज भी ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच में टेस्ट मैच की श्रृंखला चल रही है। इस शृंखला को एशेज के नाम से जानते हैं। एशेज का मतलब राख होता है। क्रिकेटरों की मृत्यु की कहानी 1982 की है। ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को हरा दिया था। इंग्लैंड की हार से पूरे इंग्लैंड वासी सदमे में थे। चारों तरफ से इंग्लैंड टीम को गालियां मिल रही थीं। अखबारों में तरह-तरह की बातें लिखीं जा रही थीं। उसी समय 29 अगस्त 1982 को द स्पोर्टिंग टाइम्स में एक आर्टिकल छपा था। जिसका शीर्षक था इंग्लैंड टीम की मृत्यु। उस व्यंगात्मक लेख में लिखा था कि पूरी इंग्लैंड टीम की मृत्यु हो गई है। इनका दाह संस्कार करके ऑस्ट्रेलिया की टीम चिता की राख अपने साथ ले जा रही है।
कई महीनों तक उस हार की चर्चा होती रही। इंग्लैंड टीम के कप्तान इवो ब्लीग के नेतृत्व में 1983 में आस्ट्रेलिया गई। वहां जाकर इंग्लैंड की टीम ने ऑस्ट्रेलिया को हराया। इंग्लैंड की जीत के बाद ऑस्ट्रेलिया की एक महिला संगठन ने ब्लीग को एक कलश सौंपा। माना गया कि उस कलश में प्रतीकात्मक चिता की राख थी। ऑस्ट्रेलिया की उन महिलाओं के समूह में ऑस्ट्रेलिया की एक महिला फ्लोरेंस मोर्थी भी थीं। इंग्लैंड के कप्तान ने एक साल के बाद उस महिला से शादी कर ली थी। अपने पति यानी ब्लीग की मृत्यु के बाद फ्लोरेंस ने वह कलश एमसीसी को सौंप दिया। तब से लेकर आज तक वह कलश एमसीसी के संग्रहालय में रखी गई है। आज इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच जो क्रिकेट मैच की श्रृंखला चल रही है, इसका नाम उसी एशेज के नाम पर रखा गया है। लगभग हर दो साल के अंतराल पर होने वाले इस सीरीज के लिए दोनों टीमें कई महीनों पहले से ही तैयारी में लग जाती हैं। आज यह यह सीरीज दोनों देशों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गई है।
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