10 मुख्य वजह, जिसने यूपी में बीजेपी की आंधी को 'सुनामी' में बदला

Last Updated 11 Mar 2017 05:46:26 PM IST

राजनीतिक दृष्टि से देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हो रही है.


भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के चुनावी संग्राम में उतरी भाजपा ने राज्य में दो तिहाई बहुमत के साथ धमाकेदार वापसी कर इतिहास रच दिया. इस जीत के साथ यूपी में भाजपा का 14 साल का राजनीति वनवास भी खत्म हो गया.

यह कहना गलत नहीं होगा कि इन चुनावों में जहां भाजपा अपने रणनीतिक चक्रव्यूह में विरोधी पार्टियों को घेरने में पूरी तरह कामयाब रही वहीं विपक्ष खुद ही अपनी जड़े खोदता रहा. और आखिरकार भाजपा जहां अपने मंसूबों को पाने कामयाब रही वहीं बिखरा विपक्ष भाजपा की आंधी में तिनके की तरह उड़ गया. इन चुनावों में कुछ ऐसी बातें रहीं जिसने भाजपा की आंधी को कमजोर करने की बजाय हवा ही दी...

नोटबंदी का फायदा: पिछले साल 8 नवंबर को मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले का विपक्षी पार्टियों ने जमकर विरोध किया. इसे आम जनता के खिलाफ बताया गया. लेकिन रिकॉर्ड जनाधार ने साबित कर दिया है कि यूपी की जनता नोटबंदी के फैसले पर मोदी के साथ है.

सर्जिकल स्ट्राइक: विपक्षी पार्टियां सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर भी भाजपा को घरेने में नाकाम रहीं. अलबत्ता मोदी ही अपनी चुनावी रैलियों में सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठा रही विपक्षी पार्टियों को खरी-खरी सुनाते रहे.

भाजपा ने पूर्वांचल में तीन दिन में झोंकी पूरी ताकत: आखिरी चरण में पूर्वांचल की सीटों पर होने वाले मतदान को लेकर भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह से लेकर भाजपा के कई कद्दावर नेता तीन दिनों तक पूर्वांचल की सीटों के लिए हर जोर-आजमाइश की.

मायावती की सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला फेल: 2007 में बसपा सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला के तहत अगड़ी जातियों और दलितों का जातीय गठबंधन के सहारे सत्ता में आई थी, लेकिन इस बार न तो उनका सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला काम आया और न ही वह दलित और मुस्लिमों को एकजुट कर पाईं. जिसका फायदा भाजपा के पक्ष में गया.

सपा की पारिवारिक कलह: चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश से शुरू हुई पारिवारिक कलह सपा में फूट और फिर तोड़फोड़ का सबसे बड़ा कारण बनी. सपा समर्थक मुलायम-शिवपाल और अखिलेश गुट में बंट गए. बार-बार एक दूसरे के गूट के प्रत्याशियों का टिकट काटने से मतदाता भी गफलत में रहे. 

सपा-कांग्रेस गठबंधन: चुनाव के बेहद नजदीक आ जाने के बाद तक सपा-कांग्रेस सीटों को लेकर जूझती रहीं और आखिर में हाथ मिला लिया. कभी एक-दूसरे की विरोधी सही सपा-कांग्रेस के साथ आने को भाजपा ने भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

राहुल गांधी के इर्द-गिर्द घूमा चुनाव अभियान, नहीं आगे आईं प्रियंका: यूपी का पूरा चुनाव प्रचार अभियान राहुल गांधी के इर्द-गिर्द ही रहा. समर्थक और कांग्रेस नेता चाहते थे कि प्रियंका चुनाव अभियान का मुख्य चेहरा बनें लेकिन प्रियंका ने सिर्फ एक चुनावी रैली रायबरेली में की.  

अमित शाह का दिमाग, केशव प्रसाद मौर्या पर चला दांव: उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष पद पर केशव प्रसाद मौर्या को लाकर अमित शाह ने बड़ा दांव खेला. इससे उन्होंने विरोधी पार्टियों के ओबीसी वोटों में सेंध लगाई.

 

कई सीटों पर सपा और कांग्रेस प्रत्याशी रहे आमने-सामने: यूं तो यूपी चुनाव में सपा-कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया. इसके बावजूद कई सीटें ऐसी रहीं जहां दोनों के कैंडिडेट आमने सामने रहे जिससे मतदाता गफलत में और भाजपा फायदे में रही.

बंट गए मुस्लिम वोट: मुस्लिमों को एकजुट करने के लिए मायावती ने इस बार सौ से ज्यादा टिकट दिए. लेकिन सपा-कांग्रेस गठबंधन ने उनकी रणनीति पर पानी फेर दिया और मुस्लिम वोट सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा में बंट गए.

दीप्ति प्रकाश


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