गर्भवती महिला की मौत के मामले में जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंपी
गाजियाबाद के खोड़ा की रहने वाली एक गर्भवती महिला को 13 घंटों तक नोएडा के अस्पतालों में इलाज नहीं मिल पाया था। इस मामले को लेकर जिलाधिकारी (डीएम) सुहास एलवाई द्वारा गठित जांच समिति ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।
डीएम सुहास एलवाई (फाइल फोटो) |
रिपोर्ट के अनुसार, परिजन गर्भवती महिला को सबसे पहले नोएडा के सेक्टर-24 स्थित ईएसआईसी अस्पताल ले गए थे। अस्पताल में सारी सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद गर्भवती महिला का इलाज नहीं किया गया। इसके बाद उसे ग्रेटर नोएडा के जिम्स अस्पताल रेफर किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि ईएसआईसी अस्पताल के कर्मचारियों ने लापरवाही बरती।
रिपोर्ट के अनुसार, परिजन गर्भवती महिला को जिम्स ले जाने के बजाय पहले नोएडा के सेक्टर-30 स्थित जिला अस्पताल लेकर गए और उसे वहीं छोड़ गए।
जिलाधिकारी सुहास ने बताया, "रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में पहले ईएसआईसी अस्पताल के मैनेजमेंट, कर्मचारी और डॉक्टरों की गलती रही है। अस्पताल के निदेशक, उस दिन ड्यूटी पर कार्यरत कर्मचारियों और डॉक्टरों और एंबुलेंस के चालक को उत्तरदायी माना गया है और इन सभी लोगों पर कार्रवाई करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव (श्रम) और भारत सरकार के श्रम विभाग के सचिव को पत्र लिखा गया है। राजकीय कर्मचारी जीवन बीमा निगम के महानिदेशक को पत्र लिखकर इन सभी लोगों पर कार्रवाई करने की सिफारिश भी की गई है।"
डीएम ने बताया, "रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मरीज यदि जिला अस्पताल में इलाज होने लायक नहीं है तो हायर सेंटर पर उचित व्यवस्था के साथ रेफर किया जाना चाहिए था। इसके लिए जिला अस्पताल के डॉक्टरों और कर्मचारियों को हायर सेंटर से बात कर केस ट्रांसफर किया जाना चाहिए था। जिला अस्पताल में कार्यरत कर्मचारियों ने गंभीर लापरवाही बरती है। अस्पताल में उपस्थित कर्मचारियों, डॉक्टर इस घटना के लिए जिम्मेदार हैं।"
इस बात की भी शिकायत आई है कि जिला अस्पताल से लोगों को इलाज दिए बिना वापस भेज दिया जाता है और लोगों को जिला अस्पताल से सही जानकरी और उचित सलाह भी नहीं दी जाती।
इस बारे में जिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वंदना शर्मा को कई बार हालत सुधारने के लिए कहा गया है, लेकिन उन्होंने लगातार लापरवाही बरती है। जांच रिपोर्ट के आधार पर डॉ. वंदना का जिले से बाहर तबादला करने और उनके स्थान पर योग्य अधिकारी की तत्काल नियुक्ति करने के लिए शासन से सिफारिश की गई है। साथ ही, डॉ. वंदना और जिम्मेदार डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश भी की गई है।
कहा गया है कि इस मामले में जिम्स अस्पताल के कर्मचारियों और डॉक्टर ने भी लापरवाही बरती है।
डीएम ने बताया कि उस दिन ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जिम्स के निदेशक को निर्देशित किया गया है। साथ ही गर्भवती महिला को प्राइवेट अस्पतालों ने भी कोरोना वायरस के कहर की वजह से इलाज देने से मना कर दिया था। यह उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी किए गए नियमों की अवहेलना है। साथ ही उच्चतम न्यायालय के आदेश का भी पालन नहीं किया गया, लिहाजा, गौतमबुद्ध नगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को आदेश दिया गया है कि वह इस मामले जुड़े सभी प्राइवेट अस्पतालों को नोटिस भेजें।
डीएम ने कहा कि जांच समिति की रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों के आधार पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्रवाई करेंगे। अगर जरूरत हुई तो अस्पतालों और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की जाएगी।
वहीं, सरकारी और निजी अस्पतालों के लिए एक एडवाइजरी भी जारी की गई है, जिसके तहत सभी निजी और सरकारी अस्पताल यह सुनिश्चित करेंगे कि आपातकालीन परिस्थितियों में आने वाले किसी भी मरीज को इलाज किए बिना अस्पताल की तरफ से मरीज को वापस नहीं किया जाएगा।
कहा गया है कि यदि चिकित्सकीय कारणों से अस्पताल द्वारा संबंधित मरीज का इलाज किया जाना संभव नहीं हो पा रहा है और उस मरीज को दूसरे अस्पताल में रेफर किया जाना चाहिए, तो ऐसी स्थिति में उसे रेफर करने से पहले संबंधित अस्पताल से बातचीत करनी होगी और उसे रेफर करना होगा, ताकि मरीज को इधर-उधर भटकना न पड़े।
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