इन वजहों से सचिन पायलट बना सकते हैं राजस्थान में नई पार्टी!

Last Updated 09 May 2023 03:55:41 PM IST

किसी भी चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां अपनी- अपनी जीत की रणनीति बनाने में लग जाती हैं। सामने वाली पार्टी के खिलाफ कौन सा दाँव चलना है, उसकी भूमिका बनाने में लग जाती हैं लेकिन राजस्थान, देश का इकलौता ऐसा राज्य है जहां इस समय कांग्रेस के दो बड़े नेता विपक्षी पार्टी को शिकस्त देने की तैयारी करने की बजाय एक दूसरे को ही शिकस्त देने की कोशिश में लग गए हैं। जी हां, यहां बात हो रही है, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की।


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इन वजहों से सचिन पायलट बना सकते हैं राजस्थान में नई पार्टी!


अशोक गहलोत ने जहां अपनी जादूगरी दिखानी शुरू कर दी है। वहीं सचिन पायलट ने एक कदम आगे बढ़ते हुए जन संघर्ष पद यात्रा निकालने का एलान कर सबको चौंका दिया है। अशोक गहलोत भले ही दुबारा मुख्यमंत्री बनने के लिए कुछ भी करें, लेकिन सचिन पायलट ने पद यात्रा की घोषणा करके यह इशारा कर दिया है कि वो कुछ बड़ा कदम उठा सकते हैं। यानी जरुरत पड़ी तो वो अपनी नई  पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में जा सकते हैं।


राजस्थान में ऐसी हलचल शुरू हुई है, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के एक ब्यान से। अशोक गहलोत ने एक सभा को सम्बोधित करते हुए यह कह दिया कि 2020 में उनकी सरकार गिर गई होती अगर वसुंधरा राजे सिंधिया ने साथ नहीं दिया होता तो। उन्होंने भाजपा के दो नेताओं शोभारानी और कैलाश मेघवाल की मदद का भी जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि उनकी कुर्सी बचाए रखने में इन दोनों नेताओं का भी बहुत सहयोग रहा।

अशोक गहलोत को जादूगर भी कहा जाता है। उन्होंने ऐसा बोलकर किस पर जादू चलाया है यह तो अभी कोई नहीं जान पा रहा है, लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया उनकी बातें सुनकर जरूर बिलबिला उठी हैं। उन्होंने अशोक गहलोत पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि आगामी चुनाव में अपनी हार को देखकर अशोक गहलोत, अनर्गल भाषा बोल रहे हैं। वैसे अशोक गहलोत ने अमित शाह को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने कह दिया कि 2020 में उनकी सरकार को गिराने के लिए अमित शाह ,धर्मेंद्र प्रधान और गजेंद्र सिंह शेखावत ने कांग्रेसी विधायकों को पैसे दिए थे। अशोक गहलोत ने अपने विधायकों से कहा कि वो भाजपा का पैसा वापस कर दें, नहीं तो अमित शाह हमेशा दबाव बनाते रहेंगे।

 राजस्थान में अशोक गहलोत और भाजपा के नेताओं के बीच की इस बात से बेफ़िक्र सचिन पायलट ने इस मसले पर बोलने की बजाय एक ही अलग रास्ता अख़्तियार कर लिया है। दरअसल 2020 में सचिन पायलट अपनी ही सरकार से खफा होकर कुछ विधायकों  के साथ बहुत दिनों तक अलग रहे थे। 2018 में अपने आपको मुख्यमंत्री ना बनाए जाने से नाराज थे। 2020 में एक समय ऐसा लगा था कि शायद राजस्थान की सरकार गिर जायेगी। हालांकि कुछ दिनों बाद अशोक गहलोत अपनी सरकार को बचाने में कामयाब रहे। कांग्रेस पार्टी हाई कमान ने भी उन पर भरोसा जताया था।

राजस्थान में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। अशोक गहलोत की अपनी रणनीति साफ़ है। भाजपा एक बार फिर से सत्ता पर काबिज होने की जुगते लगा रही है, लेकिन सचिन पायलट की राहें क्या होंगी, अभी तक साफ़ नहीं हुआ है। उन्होंने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को हायर भी कर लिया है। आगामी 11 मई से वह जन संघर्ष पद यात्रा की शुरुवात करने जा रहे हैं। आम तौर पर ऐसी यात्राओं या रैलियों की शुरुवात पार्टी अध्यक्ष की तरफ से होती है, या पार्टी हाई कमान जिसे नियुक्त करता है, वह नेता ऐसी यात्राओं का संचालन करता है, लेकिन यहां सचिन पायलट खुद ही वह रैली करने जा रहे हैं।

 उनकी पद यात्रा से शायद पार्टी हाई कमान खुश नहीं होगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को तो बिलकुल ख़ुशी नहीं हो रही होगी। सचिन पायलट, यह यात्रा करके शायद पार्टी हाई कमान पर दबाव बनाना चाह रहे हैं। वह चाह रहे हैं कि चुनाव से पूर्व पार्टी हाई कमान उन्हें कोई बड़ी भूमिका दे दे। कुल मिलाकर वह चाह रहे हैं कि पार्टी उन्हें चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दे। हालांकि सचिन पायलट, कांग्रेस से जैसी उम्मीद कर रहे रहे हैं, वैसा होता, ना तो दिख रहा है और ना ही वैसा होने की संभावना है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि सचिन पायलट ने बगावत करने की योजना बना ली है। उनकी भाजपा में जाने की चर्चा भी हो रही है, लेकिन वह भाजपा में नहीं जायेंगे यह तय है। क्योंकि उनकी इच्छा है मुख्यमंत्री बनने की, और भाजपा उन्हें कभी भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाएगी। ऐसे में पूरी संभावना है कि वह अपनी नई पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरें
 

 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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