सीमा पर रहने वालों को पाक गोलीबारी में अपनों को खोने का दर्द
जम्मू कश्मीर में सीमावर्ती इलाकों में रहने वालों के लिये आंखों के सामने अपनों को खोने का दर्द सीमापार से हो रही गोलीबारी की चपेट में आने के डर से कहीं ज्यादा है.
पाक गोलीबारी में अपनों को खोने का दर्द (फाइल फोटो) |
सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोग जान जोखिम में डालकर रहते हैं. उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों की तरफ से दागे जाने वाले मोर्टार से खुद के और परिवार के सुरक्षित रहने के लिये हमेशा करिश्मे की उम्मीद रहती है.
सीमा पर बसे गांव सिया खुर्द के निवासी जीत राज ने कहा कि उनके शरीर के घाव तो भर जायेंगे लेकिन उनके दिल के घाव उम्रभर उसके साथ रहेंगे.
पाक की तरफ से 19 जनवरी को हुई मोर्टार चलाये जाने की घटना में उनकी पत्नी बचनो देवी का निधन हो गया. इस हादसे में उन्हें और उनके बेटे को चोट आई है.
डबडबाई आंखों से राज ने कहा, ''छर्रें की वजह से मेरे शरीर पर आई चोट तो समय के साथ ठीक हो जायेगी लेकिन पत्नी को खोने का गम हमेशा मुझे सताता रहेगा.''
उन्होंने कहा, ''जब गोलीबारी शुरू हुई तो हम अपने खेतों की तरफ जा रहे थे. हम वापस लौटे और एक गोला मेरे घर के परिसर में फटा. मेरी पत्नी इसकी चपेट में आ गई और वह मेरी आंखों के सामने मर गई.''
राज ने कहा कि पत्नी को खो देने के दर्द के बीच उसने अपने घायल बेटे को अस्पताल पहुंचाया.
उन्होंने पूछा, ''सीमावर्ती इलाके में रहने वाले लोग कब तक पाकिस्तानी बंदूकों का निशाना बनकर अपने परिजनों को खोते रहेंगे?''
जम्मू जिले के कानाचक इलाके में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी गोलीबारी में कल एक नागरिक की मौत हो गयी जबकि दो अन्य घायल हो गये थे. इसे मिलाकर गुरुवार से संघषर्विराम उल्लंघन के मामलों में मरने वालों की संख्या बढकर 12 हो चुकी है जबकि 60 से ज्यादा लोग घायल हुये हैं.
कोरोटोना गांव में रहने वाले कृष्ण लाल को अब तक इस बात पर यकीन नहीं हो रहा कि सीमा पार गोलीबारी में उनके 25 वर्षीय बेटे की मौत हो चुकी है.
गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में इलाज करा रहे लाल ने भावुक स्वर में कहा, ''एक पिता के लिये जवान बेटे की मौत देखना अभिशाप है. मैंने सीमापार से हुई गोलीबारी में अपने बेटे साहिल को खो दिया. वह एक आज्ञाकारी बच्चा था और खेतों में मेरी मदद किया करता था.''
वह कहते हैं, ''हम संघषर्विराम उल्लंघन का दंश झेलते हैं. हमारे नाते-रिश्तेदार कब तक मारे जाते रहेंगे? मैं चाहता हूं कि सरकार इसे पूरी तरह खत्म करने के लिये कोई समाधान निकाले.''
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