दिल्ली की एक अदालत ने फरवरी 2020 में हुए दंगों के दौरान शत्रुता और सार्वजनिक उपद्रव को बढ़ावा देने के आरोप में एक व्यक्ति को तीन साल कारावास की सजा सुनाई है।

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अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश परवीन सिंह ने मंगलवार को दिए आदेश में कहा कि दोषी के प्रति किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए क्योंकि उसने तनावपूर्ण समय में मुस्लिम समुदाय के प्रति घृणा पैदा करने वाले संदेश फैलाकर तथा लोगों को उस समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिए उकसाकर ‘‘पहले से ही मौजूद तनाव को और भड़काया।’’
अदालत के इस आदेश के बावजूद दोषी को रिहा कर दिया जाएगा क्योंकि वह पहले ही तीन साल से अधिक समय तक जेल में रह चुका है जो इस प्रकार के अपराधों के लिए अधिकतम सजा है।
अदालत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और सद्भाव के लिए हानिकारक कार्य करना) और धारा 505 (सार्वजनिक उपद्रव पैदा करने के लिए बयान देना) के तहत पांच जून को दोषी ठहराए गए लोकेश कुमार सोलंकी की सजा की अवधि को लेकर सुनवाई कर रही थी।
सोलंकी को प्रत्येक अपराध के लिए तीन साल के साधारण कारावास और 25,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई।
अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि यह सच्चाई है कि दोषी पहले ही तीन साल से अधिक की सजा काट चुका है जो आईपीसी की धारा 153-ए और 505 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दी जाने वाली अधिकतम सजा है।’’
अदालत ने कहा कि सोलंकी पहले ही तीन साल से अधिक समय से जेल में बंद है और उसे जुर्माना अदा करने पर रिहा कर दिया जाना चाहिए।
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