Bar के सहयोग के बिना भारी बकाए से निपटना मुश्किल होगा : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 17 Sep 2023 08:03:03 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि बार के सदस्य मुकदमे के समापन में अपना सहयोग नहीं देते हैं तो अधीनस्थ अदालतों के लिए भारी बकाया मामलों से निपटना बहुत मुश्किल हो जाएगा।


न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति राजेश जिंदल की पीठ ने यह टिप्पणी एक दीवानी मुकदमे में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री के निष्पादन और संचालन पर रोक लगाने वाले बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए की।

पीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान वादी के वकील द्वारा लगातार आपत्तियां उठाई गईं और परिणामस्वरूप ट्रायल कोर्ट को जिरह का एक बड़ा हिस्सा प्रश्‍न और उत्तर के रूप में रिकॉर्ड करना पड़ा, जिससे उसका काफी समय बर्बाद हो गया।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में टिप्पणी की, "अगर बार के सदस्य ट्रायल कोर्ट के साथ सहयोग नहीं करते हैं, तो हमारी अदालतों के लिए भारी बकाया से निपटना बहुत मुश्किल होगा।"

शीर्ष अदालत ने कहा कि बार के सदस्य और अदालत के अधिकारी होने के नाते अधिवक्ताओं से मुकदमे के दौरान उचित और निष्पक्ष तरीके से आचरण करने की अपेक्षा की जाती है।

इसमें कहा गया है कि निष्पक्षता महान वकालत की पहचान है और यदि वकील जिरह में पूछे गए हर सवाल पर आपत्ति जताने लगते हैं, तो सुनवाई सुचारू रूप से नहीं चल सकती, जिसके परिणामस्वरूप इसमें देरी हो सकती है।

इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड पर उपलब्ध डेटा से संकेत मिलता है कि महाराष्ट्र में ट्रायल कोर्ट में बड़ी संख्या में मुकदमे लंबित हैं।

अपीलकर्ता ने शीर्ष अदालत के समक्ष तर्क दिया था कि पूर्ण सुनवाई के बाद उसके पक्ष में दिए गए निष्कर्ष को उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम रोक का आदेश देकर रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह वास्तव में अपील में अंतिम राहत देने के समान है।

उन्‍होंने कहा था, "हम डिक्री के खिलाफ अपील के लंबित रहने के दौरान पारित एक अंतरिम आदेश से निपट रहे हैं।"

मामले में शामिल कानून और तथ्यों का विश्‍लेषण करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा : "उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश में गलती ढूंढना बहुत मुश्किल है, जो मूल अपील के निपटान तक प्रभावी रहेगा।"

आईएएनएस
नई दिल्ली


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