जीबी पंत अस्पताल में मुफ्त वाल्व प्रत्यारोपण की सुविधा
दिल, दिमाग, उदर संबंधी विकृतियों की शल्यक्रियाओं के लिए उत्कृष्ट दिल्ली सरकार के अस्पताल डा. गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल में इलाज कराने वाले कार्डियाक रोगियों के लिए राहत की खबर है।
![]() जीबी पंत अस्पताल |
अस्पताल प्रशासन ने जापान के प्रो. शिगेयुकी ओजाकी द्वारा विकसित पेरिकार्डियम झिल्ली (टिश्यू) नामक नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल कर मुफ्त में खराब वाल्व को बदलना शुरू किया है। अब तक 53 से अधिक मरीजों को इस सुविधा का लाभ मुफ्त में प्रदान किया जा चुका है।
अस्पताल में डिपार्टमेंट आफ कार्डियक थोरेसिक वास्कुलर सर्जरी यूनिट के डा. एसए नकवी के अनुसार जापान के वैज्ञानिक प्रो. शिगेयुकी ओजाकी ने इस नवीनतम तकनीक की खोज की है, इसलिए इस तकनीक का नाम उनके नाम पर ही रखा गया है। खासियत यह भी है कि इसमें मरीज के हार्ट के ऊपर की पेरिकार्डियम झिल्ली (टिश्यू) से ही वाल्व बनाया जाता है। इसे मरीज के खराब हुए वाल्व को निकालकर उसकी जगह लगा दिया जाता है। अस्पताल में नई तकनीक के जरिए मरीजों के हार्ट में वाल्व नि:शुल्क लगाया जा रहा है। पूर्व में वाल्व लगवाने का खर्च सरकारी अस्पताल में 40 से लेकर 80 हजार रुपए तक आता था, जबकि निजी अस्पताल में यह कीमत 80 हजार से लेकर पांच लाख रुपए तक थी। ओजाकी तकनीक से जो वाल्व बनाकर मरीजों में लगाए जा रहे हैं, वह जापान की तकनीक है। जीबी पंत में यह सुविधा पूरी तरह निशुल्क है।
दो तरह के वाल्व : डा. नकवी ने बताया कि बाजार में दो तरह के वाल्व उपलब्ध हैं। एक मैके निक ल वाल्व और दूसरा वायो प्रोस्थेटिक वाल्व। मैकेनिकल वाल्व मैटल के बने होते हैं। इसलिए इन पर खून का थक्का जमने का खतरा रहता है। जिंदगी भर मरीज को खून पतला करने की दवा खानी पड़ती है। वहीं, वायो प्रोस्थेटिक वाल्व जो सुअर या गाय के टिश्यू से बनाए जाते हैं। इसे लगाने से खून पतला करने की दवा नहीं खानी पड़ती, लेकिन ये अधिक टिकाऊ नहीं होते हैं। 10 साल में ही खराब हो जाते हैं।
कई तरह के लाभ
नई तकनीक में वाल्व मरीज के शरीर के ही टिश्यू से बनाकर लगाए जाने के कारण यह निशुल्क है। मरीज को इन्हें बाहर से खरीदने की जरूरत नहीं है। इस तरह के वाल्व को लगाने से मरीज को जिंदगी भर खून पतला करने वाली दवा नहीं खानी होती है। ये मार्केट में उपलब्ध वाल्व की तुलना में अधिक टिकाऊ होते हैं। इसलिए जल्दी वाल्व बदलने की जरूरत नहीं पड़ती है।
अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डा. अनिल अग्रवाल के अनुसार जीबी पंत इस तकनीक का प्रयोग करने वाला दिल्ली-एनसीआर का पहला और देश का दूसरा अस्पताल है। अभी तक वाल्व के लिए मरीज को 40 हजार से लेकर पांच लाख रुपए तक खर्च करने होते थे। यह तय है कि इस तकनीक के प्रचलन से ज्यादा से ज्यादा मरीजों को लाभ मिलेगा।
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