शाम ढलते ही जगमग हुआ विजय चौक

Last Updated 30 Jan 2019 05:19:09 AM IST

सूचना एवं प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल अब 10 साल का स्कूल जाने वाला बच्चा हो या फिर 70 साल का बुजुर्ग हर वर्ग के लोगों में सिर चढ़कर बोल रहा है।


राजधानी के रायसीना हिल्स पर आयोजित बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम के दौरान रोशनी में नहाया राष्ट्रपति भवन। इस मोहक दृश्य को अपने मोबाइल में कैद करते लोग। फोटो : प्रेट्र

कुछ ऐसा ही मंगलवार को विजय चौक पर केंद्रीय रक्षा मंत्रालय की ओर से आयोजित तीनों सेनाओं के सामूहिक बैंडों द्वारा आयोजित समापन समारोह-बीटिंग रिट्रीट में दिखा। बीटिंग रिट्रीट पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत ठीक सायं 5 बजकर 15 मिनट पर प्रारंभ हुआ व समापन करीब 6 बजकर 15 मिनट पर हुआ। उस वक्त तक परंपरा के अनुसार सूर्य लगभग अस्त होने के करीब था विजय पथ अंधेरे में गुल हो गया था, इस बीच कार्यक्रम स्थल पर मौजूद दर्शकों ने मोबाइल की लाइट जलाई और जो टिमटिमाते तारों की तरह दूर से दिख रहे थे। कुछ ने इस अति रोमांचक एवं रमणीय पल की रिकार्डिग भी की। यह दृश्य हालांकि की 5 से 7 मिनट तक ही रहा। लेकिन कार्यक्रम में शिरकत कर रहे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत तीनों सेनाओं के प्रमुख समेत विभिन्न विभागों और देश विदेश से शिरकत कर रहे अतिथि प्रसन्न हो गए।

रक्षा मंत्रालय में कार्यरत एक वरिष्ठ अधिकारी के पिता एचएस राव (68) भी सेल्फी लेते दिखे तो उनकी करीब बैठी पत्नी गीता (65) अपने मोबाइल से रिकार्डिग कर रही थी। यही नहीं वीआईपी दीर्घा में बैठे हर शख्स के हाथ में मोबाइल था। डीपीएस आरके पुरम में 10 कक्षा के छात्र राहुल ने कहा कि सर, अब तो हाईटेक जमाना है, सूचना प्रौद्योगिकी का यही तो फायदा है कि हम हर पल को कैद कर सकते हैं।कक्षा आठ में संस्कृति स्कूल में पढ़ने वाली उसकी बहन राखी ने कहा कि मोबाइल, आईपैड, कम्प्यूटर ने हमारे जीवन को बदल दिया है। इंटरनेट के जरिए मैंने अपने फ्रांस में बैठे मामा, मामी को वाट्सएप के जरिए इस ऐतिहासिक प्रदर्शन का लाइव दिखाया।
एलईडी कैमरे बने आकषर्क का केंद्र : इस बार एलईडी का प्रयोग किया गया। हालत यह थी कि सामने बैंड बाजों का प्रदर्शन देखने की बजाय दर्शक दीर्घा में लगे स्क्रीन में देख कर खुश हो रहे थे दरअसल, उसमें ज्यादा दृश्य स्पष्ट दिख रहे थे।
बीटिंग रिट्रीट का महत्व : समापन समारोह सदियों पुरानी उन दिनों की सैन्य परंपरा है जब सूर्यास्त होने पर सेना युद्ध बंद कर देती थी। जैसे ही बिगुल वादक समापन की धुन बजाते थे सैनिक युद्ध बंद कर देते थे और अपने शस्त्र आदि समेट कर युद्ध के मैदान से लौट पड़ते थे। इसी कारण समापन धुन बजने के दौरान अविचल खड़े रहने की परंपरा आज तक कायम है। समापन पर ध्वज और पताकाएं खोलकर रख दी जाती हैं और झंडे उतार दिए जाते हैं। ड्रम वादन उन दिनों की यादगार है जब कस्बों और शहरों में तैनात सैनिकों को सायंकाल एक नियत समय पर उनके सैन्य शिविरों में बुला लिया जाता था। इन्हीं सैन्य परंपराओं पर आधारित यह समापन समारोह हमें पुराने समय की याद दिलाता है।

ज्ञानप्रकाश/सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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