बची बिजली बेच कर करोड़ों कमा रही कंपनियां
राजधानी दिल्ली की बिजली वितरण कंपनियां आपूर्ति से बची बिजली अपनी सिस्टर कन्सर्न को बेचकर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए कमा रही है.
बची बिजली बेच कर करोड़ों कमा रही कंपनियां (फाइल फोटो) |
बिजली बेचने से होने वाले लाभ का कोई हिसाब किताब डीईआरसी में एआरआर जमा करने के दौरान भी नहीं देती है. यह कारोबार 2007 से चल रहा है. इस खेल में बिजली वितरण कंपनियों को ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है.
बिजली वितरण कंपनियां बिजली उत्पादन कंपनियों से मांग से अधिक बिजली खरीदती है. इसमें से जितनी मांग दिल्ली में होती है उतनी बिजली दिल्ली पावर ग्रिड से बिजली वितरण कंपनियां ले लेती है बची बिजली बिजली वितरण कंपनियों की सिस्टर कंपनियां लेकर अपने क्षेत्र में उनका उपयोग कर लेती है.
बिजली वितरण कंपनियों ने अपनी सिस्टर कंपनियों को कितनी बिजली नान पीक आवर में और कितनी पीक आवर में बेची. इसका हिसाब बिजली वितरण कंपनियां तो रखती है और उसकी कीमत भी बिजली वितरण कंपनियां वसूलती है.
मजे की बात है कि इसका कोई लेखा जोखा और लाभ बिजली वितरण कंपनियां डीईआरसी को नहीं देती है. हालांकि दिल्ली के उपभोक्ता इस मामले को डीईआरसी की जनसुनवाई में कई बार उठा चुके है, लेकिन बिजली वितरण कंपनियों ने दिल्ली के बिजली उपभोक्ताओं की मांग अनसुनी कर देती है.
2007 से शुरू हुआ है यह खेल
वर्ष 2007 तक दिल्ली ट्रांसको लिमिटेड एनटीपीसी, एनएचपीसी तथा अन्य बिजली उत्पादन कंपनियों से बिजली खरीदकर बिजली वितरण कंपनियों बीएसईएस राजधानी और यमुना के अलावा टीपीडीडीएल को बिजली की आपूर्ति करती थी, लेकिन 2007 में तत्कालीन प्रमुख सचिव ने बिजली अधिनियम 2003 में संशोधन कर बिजली वितरण कंपनियों को बिजली खरीदने का अधिकार दे दिया था. इसके बाद बिजली कंपनियों ने मांग से अधिक बिजली खरीदनी शुरू कर दी. दिल्ली की मांग को पूरा करने के बाद बची बिजली सिस्टर कंपनियों को देना शुरू दिया. इस खेल में बिजली वितरण कंपनियों को प्रतिवर्ष करोड़ों का लाभ हो रहा है. इस मामले में ऊर्जा विभाग के पूर्व सचिव शक्ति सिन्हा ने कहा कि दिल्ली में बिजली की मांग में सुबह और शाम में बहुत अंतर होता है. ऐसी स्थिति में अगर अनुमान के अनुरूप मांग नहीं बढ़ती है तो बिजली बच जाती है. ऐसे में बिजली वितरण कंपनियों को बची बिजली आपूर्ति करनी होगी.
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