आखिर कहां हुई चूक? कोरोना ने इंदौर में पैर पसारे

Last Updated 18 Apr 2020 01:02:35 PM IST

मध्य प्रदेश की व्यापारिक नगरी-इंदौर की देश में पहचान सबसे साफ-सुथरे शहर की है। साथ ही यह शहर चिकित्सा सुविधाओं के मामले में देश के महानगरों की बराबरी पर पर खड़ा नजर आता है। यही नहीं, यहां राजनीतिक हस्तियों की भरमार है। इन सबके बावजूद इस शहर को कोरोना वायरस ने बुरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लिया है।


(फाइल फोटो)

बीमारी के फैलाने की वजह सरकार का प्रशासनिक मशीनरी पर अति विश्वास और प्रशासनिक अमले व आमजन का खुद पर अति आत्मविश्वास को माना जा रहा है।

कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर देश में सबसे ज्यादा मुसीबत में घिरे महानगरों में इंदौर की गिनती हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में कुल 1310 में से 842 मरीज सिर्फ इंदौर में है। इस तरह मरीजों में से 64 प्रतिशत मरीज सिर्फ इंदौर में है। यही हाल मौत के आंकड़े को लेकर है। कुल मौतें 69 हुई है जिसमें से 47 मौतें इंदौर की है। इस तरह कुल मौतों में 68 प्रतिशत मौतें इंदौर में हुईं।

स्वच्छता और स्वास्थ्य के मामले में इंदौर की पहचान जागरूक शहरों में है। यहां का आम आदमी जागरूक तो है ही साथ में यह चिकित्सा के हब के तौर पर पहचाना जाता है। चिकित्सा की आधुनिक सुविधाएं भी अन्य महानगरों से कम नहीं है। इसके अलावा राजनीतिक तौर पर देखें तो पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जैसे राजनेताओं का यहां से नाता हैं। प्रदेश में किसी भी दल की सरकार हो दो से चार मंत्री इसी जिले के होते हैं। उसके बाद भी कोरोना वायरस ने यहां पैर पसार लिए यह बड़ा सवाल बना हुआ है। यहां के लोगों को यह जरा भी गुमान नहीं था कि बीमारी उनके बीच आ भी सकती है। इसी ने उन्हें कोरोना के संक्रमण के मामले में लापरवाह बना दिया।

बीते दो दशक से मालवा-निमाड़ में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता जन स्वास्थ्य अभियान के सह-समन्वयक अमूल्य निधि का मानना है कि सरकार का नौकरशाही पर अतिविश्वास और नौकरशाही का अति आत्मविश्वास ही बीमारी के फैलने का कारण हैं।

वह कहते हैं, "आपस में समन्वय नहीं है। वास्तव में इस संक्रमण के फैलने की पटकथा तो 22 मार्च को जनता कर्फ्यू को उसी दिन लिख दी गई जब लोगों ने शाम को उत्सव मनाया। सोशल डिस्टेंसिंग के सारे नियमों और शर्तों को तार-तार कर दिया गया। राजवाड़ा पर ऐसा प्रदर्शन किया जैसे देश जीत गया हो।"

वो आगे कहते है कि इंदौर स्वच्छता के मामले में देश में चर्चाओं में है और यहां उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं की भरमार है। इसके चलते आमजन को भी इस बात का भरोसा नहीं था कि कोरोना उनके शहर में भी दस्तक दे सकता है। इसके साथ राजनीतिक घटनाक्रम और उसके बाद हुए प्रशासनिक फेरबदल और वाहवाही लूटने के लिए चल रहे व्यक्तिवादी नजरिए ने इस समस्या को और बढ़ाने का काम कर दिया है। आपसी समन्वय भी नजर नहीं आ रहा है।

इंदौर की स्थिति पर गौर करें तो एक बात साफ है कि, राज्य का सबसे विकसित और आधुनिक सुविधाओं वाला शहर है। यहां अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा है और कई देशों की उड़ानें भी आती रही हैं। इतना ही नहीं रेल और बस सुविधा के मामले में अव्वल है। कई राज्यों से सीधा संपर्क है। औद्योगिक दृष्टि से भी यहां कई बड़े उद्योग हैं, जिससे देशी-विदेशी लोगों की आवाजाही कुछ ज्यादा ही रहती है। इसके अलावा यहां दूसरे स्थानों के हजारों छात्र अध्ययन करने और शिक्षित रोजगार करने आते हैं। वहीं इंदौर के हजारों बच्चे दूसरे शहर और विदेशों में भी पढ़ते हैं, जो हाल ही में लौटे भी हैं।

कलेक्टर मनीष सिंह भी बाहर से आने वालों को बीमारी फैलाने की वजह मान रहे हैं। उनका कहना है, "इंदौर में कोरोना हवाई मार्ग से आए यात्रियों के जरिए आया है। जनवरी फरवरी में हवाई मार्ग से पांच से छह हजार यात्री इंदौर आए हैं। इन यात्रियों के जरिए ही यह बीमारी आई है, इसके अलावा कोई और माध्यम है ही नहीं। उनकी स्क्रीनिंग और सख्ती से होम क्वारंटाइन कराया जाना चाहिए था। इसके साथ बाहर से आने वाली फ्लाइट से आए लोग कहीं न घूमें यह भी ध्यान दिया जाना था। उन्हीं यात्रियों की वजह से यह स्थितियां बनी हैं।"

इंदौर फार्मासिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष विनय बाकलीवाल बीमारी फैलाने का बड़ा कारण सोशल डिस्टेंसिंग पर ध्यान न देने को मानते हैं। उनका कहना है, "इंदौर में शुरुआत में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया गया और बीमारी फैलने की सबसे बड़ी वजह यही रही।"
 

आईएएनएस
इंदौर


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