क्यों बौखलाए हैं नक्सली

Last Updated 25 Apr 2017 04:03:59 AM IST

बस्तर की खूनी धरती पर एक बार फिर जघन्य नक्सली वारदात ने उन रक्तरंजित सवालों को कुरेद दिया है जो इस शांत वादी में लगातार सुलग रहे हैं.


क्यों बौखलाए हैं नक्सली

नक्सली वारदातों में हाल में आई तेजी के लिए कई कारण गिनाए जा रहे हैं जिसमे पहला कारण स्ट्रैटेजिक है. नक्सली कतई नहीं चाहते हैं कि जंगल में उनके महफूज ठिकानो तक सके बने. दरअसल बस्तर में अब सडक निर्माण का काम कराना सुरक्षा बलों के जिम्मे है जिसमे रोड ओपनिंग पार्टी के लगातार बढ़ते दबाव की वजह से बस्तर संभाग में नक्सलियों के पैर उखने लगे हैं.


नक्सली बयानों में हमेशा कहा गया है कि छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक संपत्ति व संसाधनों खासकर जल-जंगल-जमीन व खनिज संसाधनों एवं आदिवासी अस्तित्व पर आद्योगिक खतरे हैं. इसलिए सडके नहीं बनने देंगे.  वे बुरी तरह बौखला गए हैं. रायपुर से 500 किलोमीटर दूर बस्तर छत्तीसगढ़ का वो इलाका है जहां नक्सली हुकूमत तक सरकार भी नहीं पहुंच पाती है. बड़े पत्तों वाले सालवन से ढंके जंगलों में कई नक्सली ठिकाने हैं.

जाहिर तौर पर 26 जवानों की शहादत खुफिया महकमे की नाकामी मानी जा रही है लेकिन दो महीने में दूसरी बड़ी घटना बताती है कि सीआरपीएफ के ही जवान लगातार शहीद हो रहे हैं तो हैं कही न कही इनपुट ओरिएंटेड कॉर्डिनेशन में बी कमी है. बस्तर में आम नागरिक के सर कलम किये जाने के भय से खुफिया सूचनाएं देने का साहस नही जुटा पाता और नक्सली भय का माहौल लगातार कायम रखने इस तरह की जघन्य वारदातों को अंजाम देते हैं. यह उनकी रणनीति का हिस्सा है.

सुकमा जिले के जीरम घाटी में नक्सलियों के दुश्मन नंबर एक बस्तर टाईगर के नाम से मशहूर दिलेर महेंद्र कर्मा मार डाले गए थे. 2013 की इस घटना बाद नक्सलियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नही हुई और दुश्मनो को निपटा कर नक्सली अपने मकसद में कामयाब हो गए.

बस्तर का ही सुकमा ,दंतेवाडा व नारायणपुर  सबसे ज्यादा तबाह है.  नक्सलियों के रास्ते में बाधक जनप्रतिनिधि व आदिवासी  नक्सलियों के निशाने पर हैं. लगातार इनकी हत्या और अपहरण की घटनाएं सामने आ रही हैं. इसके पीछे लोकतंत्र को कमजोर करने और दहशत फैला कर अपना वजूद कायम रखने की नक्सली मंशा साफ है.

2015 में मोदी की बस्तर में सभा न होने पाए इस मंशा से बस्तर में काबिज माओवादियों ने एडी चोटी का जोर लगा दिया था लालगढ़ (पश्चिम बंगाल) में सेना के हाथों बुरी तरह कुचले जाने और आंध्र प्रदेश में ग्रे हाउंड फोर्स से खदेड़े जाने के बाद पश्चिम ओडीसा और दक्षिण छतीसगढ़ नक्सिलयों का अभ्यारण्य बना हुआ है.शबरी नदी के तट पर स्थित सुकमा जिला न केवल बस्तर संभाग बल्कि छत्तीसगढ़ के भी दक्षिण छोर का आखिरी जिला है. इसकी सीमा ओड़िशा और आन्ध्र प्रदेश से लगी हुई है.

हालिया हमले

11 मार्च : 2017 सुकमा में बड़ा नक्सली हमला हुआ है. आईईडी ब्लास्ट और फायरिंग में  केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) के 12 जवान शहीद तथा 3 अन्य घायल हो गये. नक्सली, शहीद जवानों की एसएलआर रायफल,रेडियो सेट और मोबाइल फोन भी लूट कर ले गये. होली के दो दिन पहले ही बस्तर से आई बुरी खबर.
मार्च 2016 : दंतेवाडा इलाके में आज एक नक्सली ब्लास्ट में सात सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए. सभी जवान नियमित गश्त पर थे. नक्सलियों ने उनके वाहन को लैंड माइन ब्लास्ट में उडा दिया
15 -7 -15 : बीजापुर जिले में चार पुलिसकर्मिंयों की हत्या, पुलिस जवानो का नक्सलियों ने चलती बस से उतार कर अपहरण किया था.
22 -8-15 : नक्सिलयों के ताजा हमले में भिंड निवासी विशेष कार्य बल-एसटीएफ के असिस्टेंट प्लाटून कमांडर कृष्णपाल सिंह राजावत शहीद हो गए और दो जवान गंभीर रूप से घायल हो गए.
11-4-15 : सुकमा जिले में  स्पेशल टास्क फोर्स (एस.टी.एफ.) पर घने जंगलों में छिप कर गोलीबारी की जिसमें पुलिस के प्लाटून कमांडर समेत सात जवान शहीद हो गए.

रमेश शर्मा
समयलाइव डेस्क ब्यूरो


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